अक्सर लोग अपनी भावनाओं को ही प्राथमिकता देते हैं और दूसरों की भावनाओं को नजरअंदाज कर देते हैं। इस स्वार्थी दृष्टिकोण से संबंधों में दूरी आ सकती है। अगर हम थोड़ा और सहानुभूति दिखाएं और दूसरों के दृष्टिकोण को समझने की कोशिश करें, तो इससे हमें बेहतर समझ और सामंजस्य मिल सकता है। नहीं तो सामाजिक दृष्टि से देखे तो सबको सिर्फ अपनी भावनाओं की फिक्र है।
हाय रे दुश्मनी
सब कहते हैं दुश्मनी करना अच्छा नहीं होता। पर सुनकर बात हजम भी नहीं होता। कारण यदि दुश्मनी करना अच्छा नहीं होता तो फिर लोग यूं दुश्मनी किया क्यों करते। कभी-कभी तो ऐसा भी देखने में आता है दुश्मनी का न सर नज़र आता है और ना ही पैर। खैर दुश्मनी तो दुश्मनी है । … Read more