Shri Krishna Vicharadhara Darshan श्री कृष्ण विचारधारा दर्शन

श्री कृष्णा की विचारधारा महाभारत के एक प्रमुख चरित्र है और भगवद गीता में उनके विचारों का महत्वपूर्ण स्थान है। उनकी विचारधारा में समर्थता, धर्म, कर्म, भक्ति, निष्काम कर्म और ज्ञान के महत्व को उजागर किया गया है। उन्होंने अर्जुन को उसके कर्तव्य का पालन करने के लिए प्रेरित किया और जीवन में समर्थता और धर्म का पालन करने की महत्वपूर्णता को बताया। उनके विचारों के आधार पर उन्होंने अपने भक्तों को एक समृद्ध और सत्य प्रिय जीवन जीने की प्रेरणा दी।

श्री कृष्ण विचारधारा दर्शन
श्री कृष्ण विचारधारा दर्शन

 

श्री कृष्ण! भगवान कैसे

श्री कृष्ण को भगवान कहा जाता है क्योंकि उन्हें हिंदू धर्म में विश्वास के आधार पर ईश्वर के रूप में माना जाता है। भगवान कृष्ण के जीवन के अनेक कथाएं, उनकी उपदेश, और उनके भक्तों द्वारा अनुभवित की गई अद्वैत अनुभूति के कारण, उन्हें परमात्मा का रूप माना जाता है। उन्हें विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में, विशेष रूप से भगवद गीता में, दिव्य पुराणों में, और वेदान्त में भगवान के रूप में उल्लेख किया गया है। इसके अलावा, भक्तिशास्त्र में भी उन्हें सर्वोच्च ईश्वर के रूप में गुणात्मक और लीलामय रूप में विस्तारपूर्वक वर्णित किया गया है।

 

श्री कृष्ण ने अर्जुन का ही साथ क्यों दिया

श्री कृष्ण ने अर्जुन का साथ दिया क्योंकि वह धर्म के पक्ष में थे और धर्म की रक्षा के लिए तत्पर थे। अर्जुन भगवद गीता में उनका शिष्य है और उन्हें धार्मिक और नैतिक ज्ञान का उपदेश मिलता है। दूसरी ओर, दुर्योधन ने अपने अहंकार और अधर्म में प्रवृत्त होकर धर्म का उल्लंघन किया था। श्री कृष्ण ने अपने आत्मिक और धार्मिक दायित्व के अनुसार धर्म के पक्ष में खड़े होकर अर्जुन का साथ दिया। इसके अलावा, श्री कृष्ण को दुर्योधन का आतिथ्य स्वीकार नहीं किया गया क्योंकि वह जानते थे कि दुर्योधन अपने स्वार्थ के लिए आया है और उनका इर्ष्या और हिंसा का प्रयास था।

 

ज्ञान की दृष्टि में महाभारत सर्वोत्तम ग्रंथ

महाभारत को ज्ञान की दृष्टि से धरती का सर्वोत्तम ग्रंथ माना जाता है क्योंकि इसमें विभिन्न प्रकार के ज्ञान, धर्म, नैतिकता, राजनीति, परिवार के महत्व, और मानवीय संबंधों का विस्तारपूर्वक वर्णन है। महाभारत में अनेक कथाएं, उपदेश, और उदाहरण हैं जो जीवन के विभिन्न पहलुओं पर ज्ञान और अनुभव प्रदान करते हैं। इसके अलावा, महाभारत में भगवान कृष्ण के उपदेश भी हैं, जो भगवद गीता के रूप में प्रस्तुत किए गए हैं, जो धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान का सर्वोत्तम संग्रह माना जाता है। इसलिए, महाभारत को धरती का सर्वोत्तम ग्रंथ माना जाता है।

 

महाभारत का विशेषतम भाग श्रीमद् भागवत गीता

श्रीमद् भगवद गीता को महाभारत का एक अद्वितीय भाग माना जाता है, जो महाभारत के भीष्म पर्व के अंतर्गत आता है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया है जो कि धर्म, कर्म, भक्ति, और ज्ञान के विषय में है। यह उपदेश गीता को एक अत्यधिक महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ बनाता है।

श्री कृष्णा को गीता को धरती पर प्रकट करने वाले ईश्वर के रूप में माना जाता है, क्योंकि उन्होंने गीता के माध्यम से मानवता को अनमोल ज्ञान प्रदान किया है। उनके उपदेशों में समस्त धर्मों का सार, समग्र जीवन की उच्चतम सिद्धि और आत्मा की मुक्ति का राह मार्ग समाहित है। उनकी आध्यात्मिक शिक्षा, ज्ञान, और प्रेरणा ने गीता को एक अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ बनाया है, जो अब तक लाखों लोगों को मार्गदर्शन कर रहा है। इसलिए, श्री कृष्णा को गीता के प्रकटकर्ता और उपदेशक के रूप में जाना जाता है।

 

कृष्ण के रूप में ब्रह्म की वाणी

श्रीमद् भागवत गीता को गीता का उपदेशक कहने के साथ ही परम शक्ति ब्रह्म की वाणी के रूप में भी जाना जाता है। इसका महत्व इसमें छिपी उच्च आध्यात्मिक ज्ञान, अनन्त शक्ति, और अद्वितीय आध्यात्मिकता के कारण है। भगवान श्री कृष्ण के वाक्यों का गहन अध्ययन और अनुसरण गीता को एक अद्वितीय धार्मिक ग्रंथ बनाता है जो सच्ची मानवता और आत्मिक उन्नति की ओर जनता को प्रेरित करता है। इसके अलावा, भागवत गीता के विचार, उपदेश और सन्देश ने इसे एक अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ के रूप में स्थापित किया है जो समग्र मानवता के लिए एक मार्गदर्शक है। इसके कारण भगवत गीता को परम शक्ति ब्रह्म की वाणी कहा जाता है।

 

श्री कृष्ण ने यदि अर्जुन को उपदेश नहीं दिया होता

गीता के उपदेश के बिना, पांडव और कौरवों के बीच का परिणाम बहुत ही भयानक होता। श्री कृष्ण के उपदेश के बिना, अर्जुन का मनोबल टूट जाता, और वह युद्ध करने के लिए तैयार नहीं होता। अगर अर्जुन ने युद्ध का समर्थन नहीं किया होता, तो पांडवों का सम्राट धृतराष्ट्र और कौरवों के राजा धुर्योधन के बीच संघर्ष काफी तीव्र होता। बिना अर्जुन के समर्थन के, पांडव अकेले होते और उनके साथी का समर्थन नहीं होता, जिससे उन्हें युद्ध में कमजोरी होती और कौरवों को उन पर बड़ा ही फायदा होता।

इस रूप में, अर्जुन के उपदेश के बिना, पांडवों का युद्ध में हारना संभव था, और कौरवों की विजय होती। इससे महाभारत का इतिहास बदल जाता, और धर्म की जीत नहीं होती। श्री कृष्ण के उपदेश के बल पर अर्जुन ने समर्थन किया और युद्ध किया, जिससे धर्म की जीत हुई और सत्य की विजय हुई।

 

श्री कृष्ण भक्त वत्सल है कैसे

श्री कृष्णा ने अपने भक्तों के प्रति अत्यंत संवेदनशीलता और प्रेम दिखाया है। उन्होंने अपने भक्तों को बताया कि जो भी व्यक्ति ईश्वर के रूप में किसी भी स्थान पर पूजा किया जाता है, वह वास्तव में भगवान ही है। यह उनका उपदेश है कि हर व्यक्ति में ईश्वर का अद्वितीय रूप होता है और सभी जीवों को सम्मान करना चाहिए।

इसके साथ ही, श्री कृष्णा ने ब्रह्म स्वरूप ईश्वर में भी सर्वोपरि होने का उल्लेख किया है। यहाँ, उन्होंने अपने भक्तों को सिद्ध किया है कि ब्रह्म एकमात्र सत्य है, जो सभी जीवों का आधार है, और वह सर्वव्यापी है। इस रूप में, श्री कृष्णा स्वयं ब्रह्म स्वरूप ईश्वर में सर्वोपरि हैं, और उनका साकार और निराकार रूप हर जीव के भीतर मौजूद है। इस उपदेश से, वे अपने भक्तों को ईश्वर के अद्वितीय और सर्वव्यापी स्वरूप की उपासना की ओर प्रेरित करते हैं।

 

भगवान श्री कृष्ण की विशेष लीला

भागवत पुराण में श्री कृष्ण की कथा अत्यंत महत्वपूर्ण है और उसमें उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं का विस्तृत वर्णन है। यहां कुछ मुख्य घटनाओं का संक्षेप में वर्णन किया जा सकता है:

1. बाल लीला: भागवत पुराण में, श्री कृष्ण की बाल लीला का विस्तारपूर्ण वर्णन है। उनके माखन चोरी, गोपियों के साथ रास लीला, और गोकुल में उनके अनेक चमत्कार श्रृंगारिक रूप से वर्णित हैं।

2. बाल गोपाल: भागवत पुराण में, कृष्ण का गोकुल से वृन्दावन की ओर गोपाल के रूप में उत्थान और उनके गोपियों के साथ गोपीचन्दन का विवाह का वर्णन है।

3. बाल गोवर्धन लीला: इस लीला में, श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर गोकुल वासियों को सुरक्षित किया।

4. श्री कृष्ण का गोकुल से मथुरा और द्वारका की ओर रवाना होना: श्री कृष्ण का मथुरा में कंस जी के खिलाफ युद्ध, उनका द्वारका में विवाह, और उनका द्वारका के राजा के रूप में उत्थान भी भागवत पुराण में विस्तार से वर्णित है।

5. भगवद्गीता का उपदेश: भगवद गीता का अर्जुन के साथ संवाद भी भागवत पुराण में विस्तार से उल्लेख किया गया है। यहां श्री कृष्ण ने अर्जुन को जीवन के महत्वपूर्ण सिद्धांतों और धर्म के बारे में उपदेश दिया।

ये थे कुछ मुख्य पहलुओं का संक्षेपित वर्णन, लेकिन भागवत पुराण में श्री कृष्ण की कथा का अधिक विस्तृत वर्णन है, जिसमें उनके जीवन के विभिन्न चरित्र, लीलाएं, और उपदेशों का महत्वपूर्ण स्थान है।

 

श्री कृष्ण की बाल लीला दर्शन

भगवान श्री कृष्ण को बाल रूप में विस्तार से बाल लीला करने की कई कारण हैं:

1. भक्तों को प्रेरित करना: बाल रूप में भगवान कृष्ण की लीलाएं भक्तों को आसानी से समझने और उनकी प्रेम और श्रद्धा को बढ़ाने में मदद करती हैं। छोटे बाल कृष्ण की मासूमियत और चंचलता से लोग उनसे अधिक अनुभव कर सकते हैं।

2. लोगों को अनुभव कराना: भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप की लीलाएं मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को अनुभव करने का अवसर प्रदान करती हैं, जैसे कि प्रेम, सहयोग, साहस, और विनोद।

3. दैवी लीला का प्रसार: बाल लीलाएं भगवान के अपने दैवी लीलाओं का प्रसार करती हैं और उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका को साधकों के समझ में स्थापित करती हैं।

श्री कृष्ण ने अपने बाल रूप में अनेक लीलाएं की हैं, जैसे कि माखन चोरी, गोपियों के साथ रास लीला, गोवर्धन पर्वत को उठाना, मुरली बजाना, और अन्य। उन्होंने अपने बाल रूप में कृत्रिम रूप से अनंत चमत्कारिक लीलाएं की, जो उनके दिव्यता और मानवता के साथ जुड़ी थीं।

 

श्री कृष्णा सबके साथ रहकर क्या प्रस्तुत की है

भगवान श्री कृष्णा का सन्देश है कि वे सभी के साथ अवतरित होते हैं और सभी मनुष्यों के साथ संबंध रखते हैं, चाहे वे ब्रह्म रूप में हों या मानव रूप में। उन्होंने अपनी लीलाओं के माध्यम से यह संदेश साझा किया कि उनका प्रेम और दया सभी के लिए समान है और वे सभी के साथ साक्षात्कार करने के लिए उपलब्ध हैं।

श्री कृष्णा ने अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं में यह सिद्ध किया कि उनका संबंध सभी के साथ बराबरी और सम्मान के आधार पर होता है। उन्होंने गोपियों, गोपों, यादवों, पांडवों, कौरवों, और अन्यों के साथ अपना समय व्यतीत किया और सभी को अपने प्रेम और दया से आशीर्वाद दिया।

उनके उपदेशों और लीलाओं में, भगवान श्री कृष्णा ने सभी को सम्मान और सहयोग की अद्वितीय ओर सीखाया। उन्होंने यह भी दिखाया कि भगवान का प्रेम और कृपा सभी के लिए उपलब्ध है, चाहे वे किसी भी वर्ण, जाति, या सामाजिक स्थिति के हों। इस प्रकार, श्री कृष्णा ने सभी को उनके समर्थन और प्रेम का अनुभव करने का संदेश दिया कि हर व्यक्ति ईश्वर के रूप में महत्वपूर्ण है।

 

श्री कृष्ण ब्रह्म स्वरूप से समाज को विशेष क्या उपदेश दिया

1. “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।” – भगवान श्री कृष्ण का ज्ञान: तुम्हारा कर्तव्य कर्म करना है, फल की चिंता मत करो।

2. “योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनंजय।” – जो योग में स्थित है, वह कर्म करो, संग को त्यागकर।

3. “वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।” – जैसे पुराने वस्त्रों को त्यागकर आदमी नए वस्त्र पहनता है, वैसे ही आत्मा शरीरों को छोड़कर नए शरीरों को धारण करता है।

 

4. “परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।” – साधुओं की रक्षा के लिए और पापियों का नाश करने के लिए।

5. “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।” – जब-जब धर्म का अधम गति करता है, उस समय मैं अपने आप को स्थापित करता हूँ।

6. “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।” – मुझे अर्जुन, तुम्हें निश्चय है कि जिस समय धर्म की हानि होती है, और अधर्म की वृद्धि होती है, तब मैं खुद को स्थापित करता हूँ।

 

ब्रह्म स्वरूप श्री कृष्ण की वाणी गीता सार क्या है

श्रीमद् भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने मानव जीवन के महत्वपूर्ण तत्त्वों का संक्षेप में विवेचन किया है। यह ग्रंथ सार्थक जीवन जीने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। इसका संक्षेप में वर्णन निम्नलिखित है:

1. कर्म और धर्म: गीता में कर्मयोग, भक्तियोग, और ज्ञानयोग के माध्यम से कर्म का महत्व और सही तरीके से कर्म करने का उपदेश दिया गया है।

2. जीवन का उद्देश्य: भगवान श्री कृष्ण ने जीवन का सही उद्देश्य और साधनों का संकेत दिया है, जो आत्म-समर्पण और अन्याय के प्रति निःस्वार्थ भाव के साथ जीने की प्रेरणा देता है।

3. संग्रहण और त्याग: गीता में संग्रहण और त्याग के महत्व का विशेष जिक्र किया गया है, जो आत्मा के विकास और स्वतंत्रता के लिए आवश्यक हैं।

4. भगवान के प्रेम का अनुभव: गीता में भगवान के प्रेम का अनुभव करने की अनुमति दी गई है, जो सभी जीवों के प्रति अनन्त है।

5. जीवन में समर्पण: गीता जीवन में समर्पण के महत्व को समझाती है, जो आत्मा के संयम और समाधान के लिए आवश्यक है।

इस प्रकार, श्रीमद् भगवत गीता सार्थक जीवन जीने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती है और आत्मा के संयम और विकास के लिए अद्वितीय उपदेश देती है।

 

श्री कृष्णा ने दर्शाया है मेरे लिए कोई विशेष नहीं कैसे?

श्रीमद् भगवत गीता में श्री कृष्ण ने यह स्पष्ट किया है कि उनके मन में जातिवाद, धर्म, और अन्य जीवों के प्रति मतभेद का कोई स्थान नहीं है। उन्होंने समझाया कि हर जीव आत्मा के रूप में समान है और उसका आध्यात्मिक उद्देश्य एक ही है। यहां कुछ मुख्य उपदेश हैं:

1. आत्मा की समता: भगवान श्री कृष्ण ने बताया कि सभी जीवों में आत्मा की समता है। उनके अनुसार, आत्मा का निजी स्वरूप सभी में समान होता है, चाहे वे जाति, धर्म, या कुल के अनुसार कितने भी भिन्न दिखाई दें।

2. निःस्वार्थ भाव: भगवान श्री कृष्ण ने अपने उपदेशों में निःस्वार्थ भाव की महत्ता को बताया है। उनके अनुसार, अधिकारिक या भेदभावपूर्ण मन से नहीं, बल्कि निःस्वार्थ भाव से कर्म करना चाहिए।

3. समर्पण और सेवा: गीता में श्री कृष्ण ने आत्मसमर्पण और सेवा के महत्व को समझाया है, जो समाज में सहयोग और एकता को प्रोत्साहित करता है।

इन उपदेशों के माध्यम से, भगवान श्री कृष्ण ने यह साबित किया कि उनके मन में किसी भी प्रकार का जातिवाद, धर्मवाद, या अन्य जीवों के प्रति मतभेद का स्थान नहीं है। उन्होंने समस्त मानवता को आत्मसमर्पण, सेवा, और प्रेम के माध्यम से एकत्रित करने का संदेश दिया।

 

श्री कृष्ण के लिए पांडव प्रिय क्यों रहे

भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों के प्रति अपना विशेष प्रेम और समर्थन दिखाया है। उन्होंने पांडवों को धर्म के पथ पर साथ दिया और उन्हें समय-समय पर उनके अवसर पर सलाह और मार्गदर्शन प्रदान किया।

जब भी पांडवों को किसी संघर्ष में फंसने का सामना होता, वह बड़े उत्साह और संकोच के साथ उनके साथ खड़े होते। वह अपने बुद्धि, विवेक, और शक्ति के साथ उन्हें प्रेरित करते और सहारा देते थे।

भगवान श्री कृष्ण का पांडवों को आशीर्वाद देते समय उनका उद्धार और सफलता का वचन भी होता। उन्होंने अपने आशीर्वाद से पांडवों को प्रेरित किया कि वे धर्म के पथ पर स्थिर रहें और समस्त कठिनाइयों का सामना करें।

यहाँ भगवान श्री कृष्ण का पांडवों के प्रति निःस्वार्थ प्रेम और समर्थन का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जो उन्हें प्रत्येक परिस्थिति में सहायता और मार्गदर्शन प्रदान करते रहे।

 

धर्म के पास सब कुछ होता है कैसे

भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद् भगवत गीता के अंत में जहां “यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः। तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।” यह श्लोक है, उसका अर्थ है कि जहां भगवान कृष्ण हैं, और जहां अर्जुन धनुष्य उठाकर तत्व से युक्त हैं, वहां सदा ही विजय, श्री, धन, अनन्त संग्रहणीय संपत्ति, नियति और नीति का उद्भव होता है।

इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण का अभिप्राय है कि जिस स्थान पर धर्म, नीति, और योगशक्ति साथ होती है, वहां सदा ही समृद्धि, श्री, और विजय होती है। उन्होंने इस श्लोक के माध्यम से यह बताया कि धर्म का पालन करने वाले और नीतिपरायण व्यक्ति कभी हार नहीं सकते, उन्हें हमेशा ही सफलता की प्राप्ति होती है।

 

भगवान श्री कृष्णा समाज को अपने विचार के जरिए क्या संदेश देकर गए

भगवान श्री कृष्ण ने अपने विचार से समाज को कई महत्वपूर्ण संदेश दिए हैं। उन्होंने सामाजिक, आध्यात्मिक, और मानवता के कई पहलुओं पर चर्चा की है। उनके मुख्य संदेशों में से कुछ निम्नलिखित हैं:

1. कर्म का महत्व: भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि हमें कर्म करना चाहिए, परंतु फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। कर्म करते समय निष्काम भाव से कर्म करना चाहिए।

2. समर्पण और सेवा: उन्होंने समर्पण और सेवा का महत्व बताया है। समाज सेवा, परिवार की देखभाल, और समर्पण से हम समृद्धि और शांति प्राप्त कर सकते हैं।

3. धर्म का पालन: उन्होंने धर्म के पालन का महत्व बताया है और कहा है कि हमें धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए, जो जीवन के हर क्षेत्र में हमें मार्गदर्शन प्रदान करता है।

4. भक्ति और प्रेम: उन्होंने भक्ति और प्रेम के महत्व को बताया है। परमात्मा के प्रति प्रेम और उसके प्रति श्रद्धा से हम आत्मिक ऊर्जा और संतुष्टि प्राप्त कर सकते हैं।

5. सामाजिक समरसता: उन्होंने समाज में सामंजस्य और समरसता का महत्व बताया है, जिससे समाज में शांति और समृद्धि की स्थिति बनी रहे।

इन संदेशों के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण ने समाज को समृद्ध, सामंजस्यपूर्ण, और आत्मिक उन्नति की दिशा में अग्रसर करने का संदेश दिया है।

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Story Analyse 

भगवान श्री कृष्ण ने हमें कर्म का महत्व समझाया है और कहा है कि हमें कर्म करने में समर्पित होना चाहिए, लेकिन फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। वे सेवा, समर्पण, और धर्म के प्रति समर्पित रहने का महत्व बताते हैं। उनके अनुशासनों का पालन करने से हम समृद्ध, संतुलित, और आत्मनिर्भर जीवन जी सकते हैं। उनके उपदेशों का पालन करके, हम आत्मा के साथ संयोग में रहकर आनंद और शांति प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार, श्री कृष्ण के विचार हमें धर्म, सेवा, और प्रेम के मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्रदान करते हैं।

 

नम्र निवेदन –

यह लेख आपको कैसा लगा कृपया अपना विचार व्यक्त करें ।’ इस वेबसाइट का एक महत्वपूर्ण पहल है जो हर कहानी को एक नए दृष्टिकोण से विश्लेषित करती है। वेबसाइट का मुख्य उद्देश्य पाठकों को विभिन्न दृष्टिकोणों और विचारों के माध्यम से कहानियों को समझने में मदद करना है। हर वाक्य और विचार एक नए पहलू को प्रकट करता है, जिससे पाठकों को अधिक समझने और सोचने का मौका मिलता है। Story Analyse के एडिटर सुनिश्चित करते हैं कि कोई भी शब्दों में त्रुटि न हो, ताकि पाठकों को सही और स्पष्ट जानकारी प्राप्त हो। उसके बाद भी शब्दों में त्रुटि हो सकता है, उसके लिए हम अपने तरफ से खेद प्रकट करते हैं। साथ ही हम आपसे त्रुटि दर्शाने अथवा अपने विचार साझा करने के लिए अनुरोध करते हैं। आपका विचार और समय हमारे लिए महत्वपूर्ण योगदान है इसके लिए हम आपका विशेष धन्यवाद!

 

 

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