क्या मानव संस्कृति का अंत हो सकता है,विज्ञान नया क्या कर रहा है, क्या प्रकृति के बिना जीवन का कल्पना हो सकता है, प्रकृति से खिलवाड़ महंगा पड़ सकता है।
इस धरती के सभी जीव प्रकृति के अधीन हैं और प्रकृति का गुलाम है। प्रकृति के विपरीत कार्य तो किया जा सकता है परंतु प्रकृति को बदला नहीं जा सकता।
प्रकृति के विपरीत जाना प्रकृति को और विपरीत करने के बराबर है। प्रकृति का संतुलन होना भविष्य में मानव संस्कृति के अंत का कारण बन सकता है।

विपरीत मौसम अस्तित्व को खत्म करने वाला है
प्रकृति के विपरीत कोई कैसे सोच सकता है, प्रकृति की देन मानव है, मानव ने प्रकृति नहीं बनाया।
आज के मानव को प्रकृति के विपरीत मौसम चाहिए। विज्ञान इतना तरक्की कर चुका है की कहते हैं हम सब चांद पर पहुंच गए। हजारों साल पहले हीं ग्रहों की चाल गनना हमारे इतिहास में मौजूद है।
विज्ञान नया क्या कर रहा है?
विज्ञान कुछ भी नया नहीं कर रहा,किए हुए को करके विज्ञान अपने आप खुशी मनाता है। यदि बारीकी से विचार किया जाए तो जो कभी हुआ ना हो उसे कोई करने की सोच भी नहीं सकता।
ज्ञानेंद्रियों के संपर्क में आने के बाद भी वस्तु कल्पना में आता है। जिसने अपने ज्ञानेंद्रियों के जरिए, किसी वस्तु का पहला स्पर्श किया ,वह सर्वप्रथम स्पर्श करने वाला पहला कर्ता है।
प्रकृति के बिना जीवन की कल्पना नहीं
आज के मानव इस विषय पर सोचना ही नहीं चाहते की प्रकृति ने उन्हें निर्माण किया है। धरती पर अनेक मौसम बारी-बारी से आते हैं और वास्तव में मौसम ही प्रकृति है, अथवा यूं कहें की मौसम की देन है धरती पर जीव की उत्पत्ति।
मानव तन को धूप भी चाहिए, जल भी चाहिए, शुद्ध ऑक्सीजन भी चाहिए, ठंड भी चाहिए। क्योंकि इन सभी को मिलाकर ही शरीर का निर्माण हुआ है, इसलिए वास्तव में इन सभी मौसमों को सुख पूर्वक झेलने से ही मानव तन ज्यादा स्वस्थ रह सकता है।
उसका एक संक्षिप्त प्रमाण है एक मौसम में रहने वाला व्यक्ति दूसरे मौसम को प्राय: झेल नहीं पाता, और हर मौसम में रहने वाला व्यक्ति, सभी प्रकार के मौसम को झेलने में समर्थ होता है। प्रकृति के बिना जीवन का कल्पना कभी नहीं हो सकता।
इलाज करने वाला भगवान हो सकता है जो पल पल जीवन दे रही हो वह प्रकृति माता क्यों नहीं हो सकती।
इसलिए प्राकृतिक दृष्टि से प्रकृति के विपरीत मौसम का उपयोग करना, प्रकृति और अपने आप से खिलवाड़ है। वास्तव में तो आवश्यकता से अधिक किसी चीज का भोग करना, अंततः दुख:दाई होता है।
इसलिए प्रकृति को अपने अनुसार बनाने की कोशिश न करें, हम स्वयं को प्रकृति के अनुसार से ढालें, इसी में हमारी और प्रकृति दोनों का भला है।
प्रकृति को अधिक समय तक हम अपने अनुसार से बना नहीं सकते, परंतु प्रकृतिक हमेशा अपने स्वरूप में रहता है, और वह जब चाहे अपने अनुसार से हमें बना सकता है।
प्रकृति से खिलवाड़ सब कुछ खत्म कर सकता है
प्रकृति से खिलवाड़ ना करें,इसीलिए कहते हैं प्रकृति से खिलवाड़ ना करें, प्रकृति हम सब की जननीं है। इसीलिए सनातन भारत प्रकृति को मां कहता है, संसार को रचने वाला देवी कहता है।
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