जीवन एक अद्वितीय सफर है जिसमें सुख और दुःख दोनों का साथ होता है। इस सफर में हमें अनेक प्रकार की परीक्षाओं और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जो हमें मजबूत बनाते हैं। बुढ़ापा और मृत्यु हम सभी के लिए अनिवार्य हैं, और इसे स्वीकार करके ही हम जीवन को सच्चाई से समझ सकते हैं। आपके शब्दों में छुपी गहराई और विचारशीलता बहुत प्रभावशाली हैं।
किसके दिल में दर्द नहीं है, किसको बुढ़ापा नहीं आएगा, कौन है जो मरने वाला नहीं है? सबके दिल में दर्द है, सबको एक दिन बुढ़ापा आने वाला है, प्रकृति में सब कुछ नाशवान है, सभीं एक दिन मरने वाले।

सबको पता है सत्य ही ईश्वर है और ईश्वर ही सत्य है,फिर भी वास्तव में दृश्य रूप से समाज का ईश्वर पैसा है। सबको पता है सत्य से हीं दुनिया चल रही है। जो बना है वह टूटेगा। कहते हैं परमेश्वर अपने ऊपर कोई दोष नहीं लेता, और यह सत्य है, परमेश्वर अपने से न तो किसी को कुछ देता है और न ही किसी का कुछ लेता है, यह संसार अपने प्रकृति का गुलाम है। अपने कर्म का गुलाम है, कर्म फल का गुलाम है।
कोई कहता है ”परमेश्वर के सामने जाओ हाथ जोड़ लो, उसकी बंदगी कर लो, वो ईश्वर बहुत ही रहम दिल वाला है सब माफ कर देगा।” वास्तव में परमेश्वर के पास कोई दिल नहीं है, उसके प्रकृति के पास दिल है, जो इस प्रकृति को जो भी देता है जैसे देता है, यह प्रकृति उसे वैसे हीं लौटा देता है।
इस प्रकृति में किए हुए सारे पापों का हिसाब यह प्रकृति करने वाला है। प्रकृति सिर्फ वह नहीं है जो हमें अपनी आंखों से दिखता है, यह संपूर्ण ब्रह्मांड उसी प्रकृति का हिस्सा है । पापों का लेखा-जोखा लिखने वाला कोई परमेश्वर कोई बाहर का नहीं है।
जीव के अंदर ही बैठा हुआ है , वास्तव में अच्छे बुरे कर्म हमारा मन बुद्धि स्वत: ही संज्ञान लेता है। उस संज्ञान लेने वाले तत्व को कोई कुछ भी कहे, क्योंकि कोई उसे देखता नहीं है ,व्यक्ति अपने अंदर महसूस कर सकता है।
समय कभी नहीं रुकता, समय सिर्फ आगे चलता है
अब व्यक्ति उस तत्व को कैसे महसूस कर सकता है। विचार करे , चिंतन करें ,एक व्यक्ति अपने घर में बैठा हैं, और स्वयं को कुछ दूर कल्पना करता है। उस समय व्यक्ति अपने घर पर भी मौजूद मौजूद हैं, और कल्पना वाले जगह पर। उसके बाद भी एक तीसरा है जो घर और कल्पना दोनों को देखता है।
कर्म करते वक्त हर व्यक्ति के अंदर अच्छा और बुरा का ख्याल आता है। व्यक्ति स्वभाव बस कभी अच्छा कर जाता है कभी बुरा कर जाता है। परंतु व्यक्ति यदि विचार करें, एक तीसरा व्यक्ति है जिसने दोनों का संघर्ष देखा है। जबकि व्यक्ति कभी भी उस तीसरे को महत्व नहीं देता, पर यह सत्य है तीसरा भी है।
क्या परमेश्वर के विधान में ऐसा हो सकता है, अथवा प्रकृति के विधान में ऐसा हो सकता है, की उस परमेश्वर के सामने बंदगी कर लेने से, परमेश्वर सारे पापों को भूल जाएगा, नहीं कभी नहीं। समय कभी नहीं रुकता, समय सिर्फ आगे चलता है पीछे नहीं चलता, हमारे द्वारा किए गए पापों का, अथवा बुरे कर्मों का भरपाई यह प्रकृति हमारे द्वारा ही करने वाला है।
यह प्रकृति किसी और का पाप, अथवा किया गया बुरा कर्म का फल किसी और को नहीं देने वाला है। सनातन धर्म में कर्म की प्रधानता है, चरित्र का प्रधानता है, आचरण का प्रधानता है। इसलिए सनातन धर्म में मूर्ति पूजा,वास्तव में देवी देवताओं की पूजा नहीं चरित्र की पूजा होती है। क्योंकि परमेश्वर स्वरूप से नहीं अपने चरित्र से महान है। ईश्वर सत्य है और सत्य ही ईश्वर है।
व्यक्ति अपने दिल के दर्द को सुलझाते सुलझाते अंतिम सांसे गिनने की स्थिति में पहुंच जाता है, परंतु फिर भी दिल का दर्द जाता नहीं। क्योंकि वास्तव में आखरी समय में, न शरीर काम का होता है, नहीं मन काम का होता है और ना बुद्धि साथ देता है। स्वर्ग रूपी इच्छाओं की कल्पना में आस लगाए अपना सांस छोड़ कर चला जाता है, यही सत्य है, यही प्रकृति है, और यही नियम है।
प्रकृति में कोई अमर नहीं है
प्रकृति – अनन्तता की स्रोत, सम्पूर्णता का प्रतीक, और संसार की माता। यह उन्हीं के लिए है जो इसका सम्मान करते हैं और उसके संगम में जीने का आनंद लेते हैं। परंतु, एक ऐसी सत्यता भी है कि प्रकृति में कोई अमर नहीं है। यहां प्रकृति की अनन्तता का संदेश भी है और उसके परिणामों का स्वीकार करना भी है।
प्रकृति की सत्यता को समझने के लिए हमें यह स्वीकार करना होगा कि हम सभी प्राकृतिक प्रक्रियाओं के अधीन हैं। धरती के संतुलन, वायुमंडल की पवन, और जल के प्रवाह – सभी यहां प्रकृति के नियमों के अनुसार काम करते हैं। जीवन के हर रंग में, हमें प्रकृति के साथ संगठित रहना पड़ता है।
हर जीवन जो प्रकृति से जन्मता है, उसे एक दिन प्रकृति में ही लौट जाना पड़ता है। यह एक सच्चाई है जिसे हमें स्वीकार करना होगा। चाहे वह पेड़ हो, पशु हो, या मनुष्य हो – सभी इस समानता के नियम के अधीन हैं। और यह समानता ही हमें प्रकृति के साथ अपना जीवन बिताने के लिए बाध्य करती है।
अंत में, प्रकृति की महत्ता को समझकर हम उसके साथ मेल-जोल बनाए रखने का प्रयास कर सकते हैं। हमारे जीवन के हर दिन में, हमें प्रकृति के आदर्शों का पालन करना चाहिए और उसके साथ एक गहरा संबंध बनाए रखना चाहिए। क्योंकि आखिरकार, हम सभी प्रकृति के आदि और अंत में ही लबालब होते हैं।
Story Analyse
इंसान का जीवन एक सफर है, जिसमें दुख और सुख दोनों का साथ होता है। सभी के दिल में कभी न कभी दर्द होता है, क्योंकि जीवन के अनुभवों के साथ आते हैं। बुढ़ापा भी सभी के लिए अनिवार्य है, जो उम्र के साथ ही आता है और व्यक्ति को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। और मौत, जो जीवन का नियति का निश्चित हिस्सा है, वह सभी के लिए एक दिन आनी है। प्रकृति की सभी चीजें अनित्य हैं, और जीवन के इस सफर में हम सभी एक दिन मरने वाले हैं। यही हमारी मृत्यु की सच्चाई है, जो हर किसी के लिए समान है। प्रकृति में कोई अमर नहीं है, कोई भी जीव प्रकृति से जो भी कुछ लेता है यहीं पर देकर जाना पड़ता है।
नम्र निवेदन –
Prakrti Ka Hisab
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