पितामह भीष्म: संकल्प

व्यक्ति स्वयं से स्वयं को संकल्पों में बांधता है। नहीं तो पितामह भीष्म को कोई रोक सके अथवा बढ़ सके ऐसा उसे कल में कोई व्यक्ति नहीं था। पितामह भीष्म ने स्वयं से ही स्वयं को अपने संकल्पों में बांध दिया जिसका कारण भीषण महाभारत युद्ध हमें सामने दिखता है।



भारतीय महाकाव्य महाभारत में पितामह भीष्म का चरित्र एक विशेष महत्व रखता है। वे एक शक्तिशाली योद्धा और महान धर्मात्मा थे, जिन्होंने अपने संकल्पों के बल पर जीवन का मार्ग तय किया। भीष्म का संकल्प, विशेषकर वचनबद्धता, उनके व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।

भीष्म ने अपने पिता शान्तनु के लिए राजगद्दी की परवाह न करते हुए ब्रह्मचर्य का व्रत लिया। उनका यह संकल्प केवल व्यक्तिगत निष्ठा तक सीमित नहीं था, बल्कि यह राज्य, परिवार और धर्म की रक्षा का भी माध्यम बना। भीष्म ने इस संकल्प के कारण युद्ध के समय अपने भाइयों और सगे संबंधियों के खिलाफ खड़े होने का निर्णय लिया। उनके लिए धर्म और कर्तव्य सर्वोपरि थे, जिससे महाभारत का युद्ध एक दार्शनिक और नैतिक जटिलता में बदल गया।

भीष्म का संकल्प केवल युद्ध में उनकी उपस्थिति तक ही सीमित नहीं था; बल्कि उन्होंने अपने सिद्धांतों और मूल्यों की रक्षा के लिए हर परिस्थिति में स्थिर रहने का निश्चय किया। यह दिखाता है कि व्यक्ति अपने भीतर के संकल्पों से कैसे अपनी यात्रा निर्धारित कर सकता है। उनका यह संकल्प उस समय की सामाजिक और धार्मिक मान्यताओं का भी प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें व्यक्ति का कर्तव्य उसके परिवार और समाज के प्रति होता है।

महाभारत का युद्ध भीष्म के संकल्पों का परिणाम था। उनके निर्णयों ने न केवल एक परिवार को, बल्कि एक सम्पूर्ण समाज को प्रभावित किया। वे युद्ध के दौरान न केवल एक योद्धा के रूप में बल्कि एक मार्गदर्शक और नैतिकता के प्रतीक के रूप में उभरे।

भीष्म का जीवन हमें यह सिखाता है कि यदि व्यक्ति अपने संकल्पों में दृढ़ता से बंधा हो, तो वह अपने कार्यों के परिणामों का सामना कर सकता है। पितामह भीष्म का चरित्र इस बात का प्रमाण है कि व्यक्ति की आस्था, संकल्प और नैतिकता कितनी महत्वपूर्ण होती है, और ये तत्व किसी भी युद्ध या संघर्ष में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।

इस प्रकार, पितामह भीष्म का जीवन और उनका संकल्प हमें यह प्रेरणा देते हैं कि आत्म-नियंत्रण और व्यक्तिगत नैतिकता ही समाज की सच्ची प्रगति की कुंजी है। उनका जीवन हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम भी अपने संकल्पों के प्रति इतने प्रतिबद्ध हैं?

 

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