ममता अनमोल बनेचंद

श्री बनेचंद जैन के द्वारा लिखित मार्मिक लेख, मां की ममता का मोल क्या है,मां क्या-क्या करती है, मां की दर्द कौन समझे,कलाकार की भूख क्या होता है?

संसार में एक मशहूर कहावत है, सच्चा कलाकार अपने कला का मोहताज होता है, वह किसी दूसरे का मोहताज नहीं होता। नव वार्ता में ये विशेष मां की ममता अनमोल लेख है जिसके लेखक हैं – श्री बनेचन्द जैन शहादा।

श्री बनेचनद जैन मेरे अपने एक सहयोगी के मित्र हैं। जब मैं उनके बारे में सुना तो पता चला ये दुनिया में एक ऐसे लेखक हैं, जो स्वार्थ से दूर अपने लिए नहीं अपनें कला के लिए लिखते हैं।

इनके असल जिंदगी के बारे में आगे हम नव वार्ता व्यक्ति विशेष में विस्तार से बताएंगे।

श्री बनेचन्द जैन के द्वारा लिखा गया यह मार्मिक लेख आपके सामने प्रस्तुत है। दिल की बात तो दिल से ही निकलता है।

यह लेख पहले भी अखबार में प्रकाशित हो चुका है और श्री बनेचंद जैन के आदेश के द्वारा इस ब्लॉग में प्रकाशित हो रहा है। इसके लिए हम जैन साहब का हार्दिक शुक्रगुजार हैं नव वार्ता इसके लिए उनको विशेष धन्यवाद करता है।

माँ की ममता का कोई मोल नही

“उसको नही देखा हमने कभी, पर दूसरी जरुरत क्या होगी ऐ माँ तेरी सूरत से अलग, भगवान की सूरत क्या होगी।”

मजरुह सुल्तानपूरी का लिखा यह गीत आज भी कितना हृदयस्पर्शी लगता हैं, माँ भला क्या भगवान से कम होती हैं। हम जब भी दुःखी होते हैं या कोई संकट आता हैं, तो हमें भगवान की याद आती हैं, हम प्रार्थना करते हैं।

मां को हम अपनी तरह से तंग किया करते हैं। बचपन में हमारा रातों को जागना और दिन में सोना। माँ हमारे लिए कईं रातों तक सो नहीं पाती, दिन में उसे घर की जिम्मेदारी सोने नहीं देती।

मां क्या-क्या करती है?

बड़े होने पर हमारी पढ़ाई-लिखाई और सुसंस्कारों की भी जवाबदारी माँ हीं निभाती हैं। प्रसव वेदना से लेकर हमें परिपूर्ण करने तक न जाने कितनी हीं वेदनाँए भुलती हैं, सिर्फ एक ही आशा लिए कि मेरा बच्चा सुखी रहे, उसे कोई तकलीफ नही आए।

माँ अनेक कष्ट उठाकर भी अपने बच्चे का जीवन संजोती हैं, उसे रचती हैं। जीवन का सदमार्गता बताती हैं। बच्चे को चोट लगती हैं, रोता हैं थोड़ी देर बाद सो जाता हैं, पर माँ नही सोती हैं ये सोचकर की बच्चा वापस रोने नही लग जाएं।

अपने बच्चे के प्रति कितना ममत्व, कितना लगाव और आज हम बड़े हो जाने पर माँ के सारे उपकार भूल जाते हैं। हिन्दु धर्म में देवियों को माँ कहकर उपकार भूल जाते हैं।

हम अपने बचपन में उसे समझ नहीं पाते। हम थोड़ा सा कमाने क्या लग जाते हैं, गर्व करने लग मन्नते माँगते हैं, लेकिन हमारे सुख-दुःख की जितनी साक्षी वास्तव में मां हैं। हम भूल कर मां पर एहसास करने लग जाते हैं।

हमरा सबसे अपना हमारी माँ होती हैं। मां के बराबर शायद ही और कोई हो। माँ माता-पिता का पोषण कर रहे हैं, हम उनका खर्चा उठा रहे सामने हो या ना हो।

मां की दर्द कौन समझे?

माँ सिर्फ एक माँ ही होती हैं, एक रिश्ता हैं, धीरे-धीरे उनकी तरफ नफरत की निगाहों से देखने लग जाते हैं यह बिल्कुल गलत है। महा वास्तव में क्या है? मां एक संस्कार हैं, एक भावना हैं, एक संवेदना हैं। मां वह भूमि है जिसक आश्रय में हम बड़े होकर दौड़ रहे हैं।

हम ये भूल जाते हैं कि बचपन में हम कितनी शरारती थे। जीवन को शक्ति प्रदान करने वाली एक मां से कितने शरार करते हैं। कभी-कभी गुस्से में कीमती वस्तुओं का अनेक बार नुकसान किया फिर भी मां ने हमेशा दुलार किया ऐसी माँ हैं।

जिसके अन्दर ममता का अपार भन्डार हैं। कभी-कभी माँ को उटपटांग भी बोल देते हैं, पर हमारे जन्म के बाद से मां सिर्फ हमारे लिए जीती हैं।

हम हर उम्र माँ सिर्फ कभी डांटकर, समझाकर हर विपरित स्थिती में भी अपने को सम्भाल लेती हैं, अपना संतुलन नही खोती है, ज्यादा बदमाशी करने पर भी बच्चों को घर से बाहर नही करती।

माँ अपने हाथों से बच्चों को खाना खिलाती हैं, पसंद का खाना बनाती हैं, प्यार से सहलाती हैं, लोरी सुनाकर मीठी नींद सुलाती हैं।

माँ जब वृद्धावस्था की ओर बढ़ने लग जाती हैं, शरीर से कमजोर हो जाती हैं, काम करने की शक्ति क्षीण हो जाती हैं, फिर हमारा क्या कर्त्तव्य बनता हैं। मां तो बच्चों की आँखे खोलती हैं, हम कब आँखे खोलेंगे ? माँ जब हमारा बचपन सम्भाल सकती हैं, तो हम क्या माँ का बुढापा नहीं सम्भाल सकते।

वो माँ जो अपने बचें का भविष्य संवारने के लिए अपना पूरा जीवन लगा देती हैं। माँ शब्द की पवित्रता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता हैं। मां की ममता अनमोल है।

माँ के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए एक सदी भी कम हैं। सारे सागर की स्याही बना ली जाएं और सारी धरती को कागज मान कर लिखा जाएं, तब भी माँ की महिमा नही लिखी जा सकती हैं।

माँ की ममता की एक सत्य घटना जो 24 नवम्बर 2015 के नईदुनिया अखबार में छपे “माँ के दुलार से कोमा से उठ बैठा बेटा” शीर्षक के समाचार ने दिल को हिला दिया। माँ की ममता में कितनी ताकत होती हैं, ये बता दिया। घटना चीन के डुबई प्रांत के एक माँ की हैं, उसके बच्चे के सिर में दर्द हुआ वो कोमा में चला गया, लंबा इलाज चला पांच ऑपरेशन भी हुए. तो कोमा से बाहर नही आ सका, डॉक्टर हार मान चुके थे, पर माँ ने हार नही मानी, माँ को अपनी ममता पर पूरा विश्वास था, वह रोज बच्चें के कान में बात करती, संगीत सुनाती और कहती बेटा उठो गाने सुनो और माँ की ममता का अदभूत चमत्कार साढ़े छः माह बाद बच्चे ने आँखे खोल दी और कोमा से बाहर आ गया। बेटा 17-18 वर्ष का था। माँ

लेखक – बनेचंद जैन ‘बन्नु’ (शहादा )

Story Analyse

मां की ममता का मोल अनमोल है। वह अपने बच्चों के लिए असीम प्यार, समर्थन और समझने का स्रोत होती हैं। मां अपने बच्चों के लिए हर संभव प्रयास करती हैं, उनकी जरूरतों को समझती हैं और उनके साथ हर समय खड़ी होती हैं। मां का दर्द कोई भी अन्य व्यक्ति समझ नहीं सकता है, क्योंकि वह अपने बच्चों के लिए हर पल में उनका दुख और सुख महसूस करती हैं।

कलाकार की भूख उसकी संविधानिकता को अभिव्यक्ति करने की भावना होती है। यह एक उत्कृष्टता की दिशा होती है, जो उसे नवीनता, समृद्धि और सृजनात्मकता की ओर प्रेरित करती है। कलाकार की भूख उसकी आत्म-साक्षात्कार की इच्छा को प्रेरित करती है, जो उसे नई और अनूठी विचारों और व्यक्तित्व का अभ्यास करने के लिए मजबूत करती है।

नम्र निवेदन –

यह लेख आपको कैसा लगा कृपया अपना विचार व्यक्त करें ।’ इस वेबसाइट का एक महत्वपूर्ण पहल है जो हर कहानी को एक नए दृष्टिकोण से विश्लेषित करती है। वेबसाइट का मुख्य उद्देश्य पाठकों को विभिन्न दृष्टिकोणों और विचारों के माध्यम से कहानियों को समझने में मदद करना है। हर वाक्य और विचार एक नए पहलू को प्रकट करता है, जिससे पाठकों को अधिक समझने और सोचने का मौका मिलता है। Story Analyse के एडिटर सुनिश्चित करते हैं कि कोई भी शब्दों में त्रुटि न हो, ताकि पाठकों को सही और स्पष्ट जानकारी प्राप्त हो। उसके बाद भी शब्दों में त्रुटि हो सकता है, उसके लिए हम अपने तरफ से खेद प्रकट करते हैं। साथ ही हम आपसे त्रुटि दर्शाने अथवा अपने विचार साझा करने के लिए अनुरोध करते हैं। आपका विचार और समय हमारे लिए महत्वपूर्ण योगदान है इसके लिए हम आपका विशेष धन्यवाद!

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