भारत में KGB के साईड इफेक्ट 01

सुनकर और पढ़कर आश्चर्य लगता है। आजादी के पहले भारत के बारे में सबने अनेंक वाक्या सुना है। कथाओं के माध्यम से , किसी खास व्यक्ति के माध्यम से, अथवा इतिहास के माध्यम से, अनेंक बार अनेंक कुछ पढ़ा भी होगा, कुछ ऐसे भी महानुभाव होंगे जिन्होंने अपनी आंखों से देखा भी होगा। आजादी के पहले देश में अनेंक संगठन थे और आजादी के बाद भी अनेंक संगठन नए संगठन स्वरूप से आए।

भारत में KGB के साईड इफेक्ट 01



आज जो यह देश है इस स्थिति में पहुंचने के लिए देश के अनेंक महामानों ने अनेंक प्रकार से अपना योगदान दिया। जिन्हें न कोई छोटा कर सकता है अथवा ना कोई भूला सकता है। यह लेख बहुत हीं खास है। मेरा स्वयं का रुचि सदैव से अपनें भारतीय संस्कृति और विश्व के इतिहास में रहा है। मैंने अपने जीवन के आधे दौड़ पार करे। आश्चर्य..!  बहुत समय बाद   “KGB” नामक एक‌ शब्द के ऊपर अचानक मेरा ध्यान गया। जब मैंने KGB को जाना तो यह समझ में आया की आजादी के बाद जो इतिहास  लिखा गया अथवा पढ़ाया गया वह सभीं भारत विरोध के लिए एक एजेंडा था। उनका उद्देश्य यही था भारत मूल रूप से आर्थिक एवं सांस्कृतिक स्तर पर दूसरे देशों का सदैव मोहताज रहे।

KGB का नाम सुनकर मेरा रोम-रोम खड़ा हो जाता है। मैं उस काल में क्यों नहीं था। KGB के बारे में जब से जाना और समझा तब से मानों यह शब्द दिमाग के अंदर गूंजने लगा। KGB के साइड इफेक्ट के ऊपर आगे बढ़ने से पहले यह जानना आवश्यक है की KGB ऐसा कौन सा हाइड्रोजन बम था , जिसकी चर्चा आज मैं आप सब अपनें सभी भारत प्रेमियों एवं भारतीय संस्कृति के प्रेमियों के समक्ष करने जा रहा हूं।


KGB ने भारत पर सभीं हमले से बड़ा हमला किया।

KGB के बारे में बताने से पहले यह जानना बहुत आवश्यक है की KGB ने भारतीय संस्कृति के साथ क्या किया। उदाहरण के तौर पर  अमेरिका ने कभी हिरोशिमा पर एटम बम गिराए थे। उस एटम बम का गूंज आज भी सुनाई देता है। आज का नवयुवक भारत के इतिहास के बारे में क्या समझता है वह तो स्वयं हीं जानता होगा।

वही यह‌ भारत है , और आज के यही भारतवासी हैं । मैंने अपनें कान से सुना है और आंखों से देखा है। गांव लूट कर डकैतों को भागते हुए। जब गांव में आए दिन डकैतों के आने का संशय लगा रहता था। भय से ग्रामवासी तथा सरकारी होमगार्ड जो चौकीदार का काम किया करते थे । पूरी रात “जागते रहियो” का स्वर गांव में सुनाई देता था उसके द्वारा।


भारतीय संस्कृति के प्रेमियों आप सोच रहे होंगे मैं यह कौन सी कहानी सुना रहा हूं। परंतु इस लेख को समझने के लिए इन भूमिकाओं की अत्यंत आवश्यकता है। यह घटना लगभग सन् 1986 के आसपास की है। जब भारत में भारतीय सरकार का शासन था। उस समय के पहले की क्या स्थिति रही होगी जो लोगों ने देखा होगा वह मुझसे अच्छा व्यक्त कर सकते हैं। जब देश में लोग मोटरसाइकिल खरीदने से डरते थे ,  डकैतों के द्वारा हमले का अंदेशा था। डकैतों के द्वारा जान का भी खतरा था।


KGB के द्वारा दिए गए दर्द को समझने के लिए उससे पहले भारत को कितना दर्द दिया गया यह समझना अत्यंत आवश्यक है।  समय निश्चित नहीं कहा जा सकता परंतु आज से लगभग 1600 वर्ष पहले भारतीय संस्कृति पर अरबों ने हमला बोला। तत्पश्चात मंगलों मुगलों ने उत्पात मचाया। अंग्रेजों के इतिहास के बारे में हमनें बहुत कुछ सुना है पढ़ा है।


भारतीय संस्कृति भारतीयों के सभ्य होने का प्रमाण देता है, और यह सभ्य होने का प्रमाण परदेसियों के द्वारा दिया गया संस्कृति तो बिल्कुल नहीं है। क्योंकि परदेसियों के सामने सभ्य शब्द लगाना  हमारें अपनें पूर्वज महामानवों का अपमान होगा। वास्तविकता के  इस इतिहास को जानना अत्यंत आवश्यक है । जो देश पर हमला करने आए थे। जिन्होंने हमला किया और यहां की मूल संस्कृति को तहस-नहस कर दिया। उनका व्यक्तित्व कैसा था, हमला करने का उद्देश्य क्या था। उनके हमला करने की रणनीति कैसा था। उनके जीवन जीने का सिद्धांत क्या था। उनका मानवी चरित्र कैसा था।


भारत पर हमला करने वाले अरबों और मुगलों का चरित्र

मित्रों यह मत सोचो मैं क्या कह रहा हूं। जब आप किसी चरित्र को समझोगे निश्चित तौर पर उसके द्वारा किए गए क्रियाकलाप की कल्पना पूर्ण रूपेण कर सकते हो। ऐसे मैं आपको किसी दूसरे इतिहासकार की कोई आवश्यकता नहीं होगी। क्योंकि जिन उपलब्धि के ऊपर कोई उपाधि दिया जाता है उसका मूल्य कारण चरित्र हीं होता है। देश की आजादी के बाद जिन इतिहासकारों ने अपने किताब बेचने के लिए और परदेसियों का एजेंडा सेट करने के लिए इतिहास के साथ छेड़छाड़ किया उन्हें यदि दोगला कहा जाए तो भी बहुत छोटा शब्द होगा। देश की संस्कृति के ऊपर चिंतन करने वाले व्यक्ति आज भी समझ सकते हैं और उन दोगले व्यक्तियों को देख भी सकते हैं। इस विषय पर हम आगे बात करेंगे , क्योंकि इस भाषा को समझने के लिए अभी और भूमिका आवश्यक है।

भारत के प्राचीन इतिहास चींख-चींख कर कहते हैं । हमला करने वाले सिर्फ डाकू नहीं थे। वे सभी वहसी दरिंदा थे। वास्तव में उनका कोई ईमान धर्म कुछ नहीं था। वास्तव में उनका कोई सिद्धांत भी नहीं था। उनकी अपनीं कोई विचारधारा नहीं थी। वे अशिक्षित और जाहिल थे। उन्होंने सिर्फ धन नहीं लूटा , उन्होंने भारतीय संस्कृति को एक बार नहीं सैकड़ो बार बर्बाद करने की कोशिश करी । इतिहास बताता है कि वह इस प्रकार लूटते थे, की लूटपाट में जो चिन्ह नजर आता था , उसकी छाप सैकड़ों वर्ष नजर आता था। आज के संस्कृति प्रेमी आज भी उन छाप को देख सकते हैं और महसूस कर सकते हैं।

वे निहत्थे और लाचार व्यक्तियों को मौत के घाट उतार देते थे।  बलशाली पुरुषों को यातना के जरिए मौत देते थे। जब धीरे-धीरे, कहीं-कहीं पर  उन्होंने भारत में अपना जगह बना लिया । धन और बल के माध्यम से उन्होंने देश के अंदर कुछ समर्थक भी पैदा कर लिए।   उसके उपरांत  उनका एक हीं नीति था बलशाली राजाओं से दोस्ती करना, अथवा राजा के करीबियों को लालच देकर राजा की हत्या कर देना।  उन लुटेरे अत्याचारियों का चरित्र की बात करें तो मानवता के सिद्धांतों से वह कोशों दूर थे। आज के समय जो मानवता के सिद्धांत को अहमियत नहीं देते हैं, अथवा जो सिर्फ उनकें हीं सिद्धांत को महत्व देते हैं । उनका मानव चरित्र अथवा उनका मानवीय सिद्धांत समझा जा सकता है। वे कभी भी मानवीय सिद्धांत को ताक पर रखकर आपको बलि दे सकते हैं।

राष्ट्रभक्त एवं प्राचीन भारतीय संस्कृति से प्रेम रखने वाले मित्रों से मैं आग्रह करूंगा कि मैं क्या कहता हूं यह मतलब नहीं रखता। किसी एक व्यक्ति ने किसी इतिहास के ऊपर क्या कहा है यह भी मतलब नहीं रखता। आज के दिन इतिहास के सभीं तथ्य किताब के रूप में तथा सोशल मीडिया पर मौजूद हैं। एक इतिहास जो हमनें सुन रखा है जिसको बदलकर कुछ और लिखा गया। आप स्वयं उन सभीं शब्दों पर तथा वाक्या पर गहन विचार करें । संभव हो तो स्वयं इतिहास के ऊपर शोध करें। तत्पश्चात यह निश्चित करें कि उन वहसी दरिंदाओं का  , अथवा उन जाहिल डाकुओं का वास्तविक चरित्र क्या था। जिस दिन आप उन चरित्र को समझ जाओगे उसी दिन आपको भारत का वास्तविक सिद्धांत। भारत की संस्कृति एवं भारत को गौरवान्वित करने वाली भारतीयों की महान गाथा स्वत: पूर्ण रूपेण समझ में आ जाएगा।


KGB का संक्षिप्त परिचय

केजीबी के लिए संक्षिप्त में कहा जाए तो यह सोवियत संघ की प्रमुख खुफिया और सुरक्षा एजेंसी थी, जो 1954 से 1991 तक सक्रिय रही। इसका मुख्य कार्य आंतरिक सुरक्षा, विदेशी खुफिया संग्रहण, और राजनीतिक प्रतिरोध को दबाना था। केजीबी ने जासूसी, निगरानी, और प्रचार अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद इसे भंग कर दिया गया।

KGB के साइड इफैक्ट्स से भारत के राजनीति में एवं भारतीय संस्कृति में क्या-क्या बदलाव आया, यह एजेंसी अपने भारतीय एजेंट के तहत कहां तक सफल हुआ – यह विस्तार से पढ़ें अगले भाग में।

नम्र निवेदन –
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