आनंद किसी अटारी पर रखा हुआ वस्तु नहीं है जो लपक कर उठा लिया जाए। आनंद दो किस्म का होता है। एक आनंद जो स्वयं आता है और दूसरा जिसे हम जबरदस्ती लेकर आते हैं। स्वयं आने वाले आनंद का उम्र लंबा होता है और उसके साइड इफेक्ट नहीं होते। परंतु जबरदस्ती लाया गया आनंद एक तो वह जल्दी चला जाता है और अपने साथ कुछ कुप्रभाव भी लेकर आता है। जिसका प्रभाव काफी लंबे तक सुनाई देता है। आनंद ढूंढने की वस्तु नहीं है क्योंकि सब जानते हैं “किसी भी कीमत पर सुख को नहीं खरीदा जा सकता।”