नमस्कार नमस्ते प्रणाम राम-राम, जय सियाराम। कहते हैं हमारे जो अपने हैं वह प्रेम के भूखे हैं। दिल से निकले हुए शब्द के साथ प्रेम स्वत: ही सम्मिलित होता है। अपनों से अपनी भाषा में बात करें, अपनी संस्कृति में अपनी संस्कृति वाला प्रेम इजहार करें। सब अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाने में लगे हैं आपको अपनी संस्कृति में इजहार करने से संकोच क्यों ? अपनें संस्कृति की यही पुकार, नहीं रखेगा आपके संस्कृति को सुरक्षित कोई भी सरकार। दो शब्द रोज, अपनी संस्कृति में, अपने संस्कृति के लिए, अपनी आने वाले पीढीयों के उज्जवल भविष्य के लिए। रोज करें अपनी संस्कृति में नमस्कार नमस्ते प्रणाम राम-राम, जय सियाराम।