सनातन धर्म में सम्पूर्ण प्रकृति को ईश्वर का रूप मानने की अवधारणा धार्मिक, सांस्कृतिक और दार्शनिक परंपराओं का परिणाम है। यह विचार न केवल आध्यात्मिक है, बल्कि इसके पीछे गहरी नैतिक और पर्यावरणीय जिम्मेदारियां भी निहित हैं। सनातन संस्कृति अपने इन विचारों को लेकर बेहद खास माना जाता है। भारतीय संस्कृति अपने इन्हीं उच्च विचारों को पूरे विश्व में प्रदर्शित करता है। सनातन संस्कृति ने प्राकृतिक के ऊपर बहुत विशाल शोध किया हुआ है। उन्हु शोध का परिणाम है भारत का प्राकृतिक के प्रति लगाव।

आध्यात्मिकता और एकता:
सनातन धर्म दर्शन में हर जीव और वस्तु में आत्मा की मौजूदगी मानी जाती है। इस दृष्टिकोण से प्रकृति को ईश्वर का रूप मानने का मतलब है कि सभी प्राणियों और तत्वों में एकता है। यह हमें सिखाता है कि हमारे कार्यों का प्रभाव पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ता है। सनातन धर्म प्रकृति में सब कुछ आध्यात्मिक की दृष्टि से देखता है।
प्रकृति का सम्मान:
जब हम प्रकृति को दिव्य मानते हैं, तो यह हमारे लिए उसे सम्मानित करने और उसकी रक्षा करने का एक कारण बनता है। यह विचार हमें प्राकृतिक संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग की प्रेरणा देता है, जिससे हम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्थायी वातावरण बना सकें। धरती का प्रत्येक जीव जब प्रकृति के ऊपर आश्रित है फिर प्रकृति का अधिक से अधिक सम्मान होना चाहिए। वैसे भी हम सब का जीवन प्रकृति की देन है। इस दृष्टि से प्रकृति सभीं जीवों की माता है इसमें संदेह नहीं हो सकता।
संरक्षण की आवश्यकता:
इस अवधारणा से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि मनुष्य केवल प्रकृति का एक हिस्सा है, न कि उसका स्वामी। इसलिए, प्राकृतिक आपदाओं और पर्यावरणीय संकटों से निपटने के लिए हमें सामूहिक रूप से कार्य करना आवश्यक है। जब धरती के सभी जीव प्रकृति के ऊपर आश्रित है। प्रकृति नित्य दिन हर पल हम सभी का जीवन का संरक्षण करती है। इस दृष्टि से प्रकृति है तो धरती पर जीवन है ऐसे में प्रकृति का संरक्षण भी हम सब मानवों का अधिकार है।
संस्कृति और परंपराएं:
सनातन धर्म संस्कृति में अनेक त्योहार और रीति-रिवाज हैं जो प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करते हैं, जैसे कि पृथ्वी पूजा, नदियों की आराधना, और वृक्षारोपण। ये परंपराएं हमें याद दिलाती हैं कि प्रकृति की रक्षा हमारी जिम्मेदारी है। सनातन धर्म की यह अनोखी परंपरा है, की सनातन संस्कृति वाले प्रकृति से जो कुछ भी लेते हैं उसका पल-पल प्रकृति का उपकार भी मानते हैं। भारत में जितनी परंपराएं हैं सभी परंपराओं में प्रकृति मुख्य रूप से सम्मिलित हैं।
दर्शन और साहित्य:
भारतीय संस्कृति के वेद, उपनिषद और अन्य धार्मिक ग्रंथों में प्रकृति के प्रति प्रेम और उसका संरक्षण करने का संदेश दिया गया है। यह दृष्टिकोण न केवल धार्मिक है, बल्कि एक गहन दार्शनिक विचारधारा को भी व्यक्त करता है। सनातन धर्म का दर्शन मूल रूप से “वसुधैव कुटुंबकम” की बात करता है। प्रकृति से धरती पर सभी जीव एक दूसरे से जुड़ा हुआ है इस प्रकार सभी मानव एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।
Story Analyse
भारतीय संस्कृति में सम्पूर्ण प्रकृति को ईश्वर का रूप मानने की अवधारणा हमें जीवन के एक महत्वपूर्ण पहलू की ओर इंगित करती है। सनातन धर्म संस्कृति विश्व की वह संस्कृति है जिसमें सबका सम्मान है। यह सब को पता है की धरती पर जीवन एकमात्र प्रकृति पर आधारित है। प्रकृति के बिना हम अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकते। इसलिए प्रकृति की महत्व को समझना सबके लिए आवश्यक है। प्रकृति के प्रति हमारे संबंध को सुधारना और उसकी रक्षा करना। यह न केवल आध्यात्मिक संतुलन का एक साधन है, बल्कि पर्यावरणीय स्थिरता के लिए भी आवश्यक है। इस विचारधारा के माध्यम से हम एक समर्पित और जिम्मेदार नागरिक बन सकते हैं। प्रकृति को बचाना किसी एक धर्म अथवा संस्कृति का कार्य नहीं है। प्रकृति की रक्षा करना प्रकृति की मान सम्मान करना धरती के प्रत्येक मानव का कर्तव्य है। अपने इन्हीं विचारों को लेकर सनातन धर्म संस्कृति इस विश्व की सर्वोत्तम संस्कृति मानी जाती है।
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