प्राकृतिक दृष्टि से देखा जाए, तो जानवर और इंसान दोनों का अस्तित्व पृथ्वी पर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लाख कोशिशों के बावजूद, कोई जानवर इंसान नहीं बन सकता। जानवरों की अपनी सीमाएँ होती हैं, जो उनके स्वाभाविक गुण और व्यवहार से निर्धारित होती हैं। दूसरी ओर, इंसान अपनी सोच, समझ और नैतिकता के कारण जानवरों से अलग है।

हालांकि, यह भी सच है कि इंसान अपनी कुछ हरकतों के कारण जानवर जैसा व्यवहार कर सकता है। जब इंसान संवेदनहीनता, हिंसा और स्वार्थ के मार्ग पर चलता है, तो वह अपने मूल स्वरूप से भटक जाता है। ऐसे में, वह न केवल अपने सामाजिक मूल्यों को छोड़ देता है, बल्कि समाज में असामाजिक तत्वों की तरह व्यवहार करने लगता है।
आज के समय में, अनेक उदाहरण हैं जब इंसान ने अपनी नैतिकता और मानवता को तिलांजलि देकर, जानवरों जैसे गुणों को अपनाया है। यह स्थिति हमारे समाज में हिंसा, द्वेष और असहिष्णुता के रूप में दिखाई देती है। हम देखते हैं कि लोग स्वार्थ के लिए एक-दूसरे के प्रति क्रूरता का परिचय देते हैं, जो कि जानवरों के शिकार की प्रवृत्ति को दर्शाता है।
इंसान की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों ने भी इस बदलते व्यवहार को प्रभावित किया है। जब इंसान अपनी व्यक्तिगत हितों के लिए दूसरों की भावनाओं का ध्यान नहीं रखता, तब वह जानवरों की तरह ही सोचने और व्यवहार करने लगता है। ऐसे में, यह समझना आवश्यक है कि असली मानवता क्या है और हमें अपने आचरण में सुधार लाने की आवश्यकता है।
Story Analyse
देखा जाए तो किसी भी प्रकार से जानवर और इंसान का तुलना नहीं हो सकता। क्योंकि यह सब को पता है लाख कोशिशों के बावजूद, जानवर इंसान नहीं बन सकता। लेकिन दूसरे तरफ इंसान अपनी हरकतों के द्वारा जानवरों की तरह व्यवहार कर सकता है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपनी मानवता को बनाए रखें और अपने आचार-व्यवहार में सुधार लाएं। हमें यह याद रखना चाहिए कि हमारी असली पहचान हमारी संवेदनशीलता और नैतिकता में निहित है। इस पहचान को सहेजना ही हमारे अस्तित्व का असली उद्देश्य है। कुछ ऐसे भी तत्व हैं जो अनजाने में मानवता के दुश्मन जैसे व्यवहार करते हैं। सभीं धर्मो से ऊपर है मानव धर्म जिस किसी को भूलना नहीं चाहिए।