वास्तव में ईश्वर को कोई चाहता ही नहीं

ईश्वर को पाना सदियों से मानव जीवन का परम लक्ष्य माना गया है। शास्त्र, ग्रंथ, और संत-महात्मा बार-बार यह बताते रहे हैं कि ईश्वर को प्राप्त करना अत्यंत कठिन है। लेकिन जब हम समाज के चारों ओर देखते हैं, तो यह सवाल उठता है: क्या वास्तव में लोग ईश्वर को पाना चाहते हैं? वर्तमान समय में जब सांसारिक चीज़ों का आकर्षण और भौतिक वस्तुओं की ललक अपने चरम पर है, तो ऐसा प्रतीत होता है कि ईश्वर को पाने की इच्छाशक्ति समाज में दुर्लभ हो गई है।

 

सांसारिक वस्तुओं की होड़

समाज में अधिकांश लोग धन, प्रतिष्ठा, और भौतिक सुख-सुविधाओं के पीछे दौड़ते नज़र आते हैं। जीवन की आपाधापी में हम उन मूल्यों को खो रहे हैं जो हमें अध्यात्म की ओर प्रेरित करते हैं। लोग अपनी सफलताओं को भौतिक संपत्ति और सामाजिक मान्यता में मापते हैं। आध्यात्मिक शांति और आत्मिक संतुष्टि की खोज अक्सर पीछे छूट जाती है, और ईश्वर की प्राप्ति की यात्रा केवल एक विचार बनकर रह जाती है।

 

ईश्वर की अवधारणा का विस्मरण

एक प्रमुख कारण यह भी है कि ईश्वर की अवधारणा को समाज ने सिर्फ औपचारिकताओं और परंपराओं में सीमित कर दिया है। धार्मिक अनुष्ठानों और पूजा-पाठ में लोग शामिल तो होते हैं, परंतु उनका मन और आत्मा अक्सर उस गहरे संबंध से दूर रहती है जिसे हम ‘भक्ति’ कहते हैं। ईश्वर का सच्चा दर्शन तभी संभव है जब व्यक्ति अपने भीतर झांकता है, अपने जीवन की गहराइयों को समझता है, और सांसारिक बंधनों से मुक्त होता है।

 

आधुनिक जीवन की चुनौतियाँ

आज का जीवन बहुत तेज़ गति से चलता है। प्रौद्योगिकी, इंटरनेट, और सोशल मीडिया ने हमारे समय और ध्यान को बिखेर दिया है। इस व्यस्तता में आत्म-साक्षात्कार और आध्यात्मिकता के लिए समय निकालना कठिन हो गया है। लोग अपने जीवन में शांति और ईश्वर को खोजने की बजाए तात्कालिक सुखों में उलझ गए हैं।

 

ईश्वर को पाना: एक आंतरिक यात्रा

ईश्वर को पाना कोई बाहरी प्रक्रिया नहीं है, यह एक आंतरिक यात्रा है। यह तभी संभव है जब व्यक्ति अपनी आत्मा की आवाज़ को सुनने की कोशिश करता है, और अपने भीतर की सच्चाई को जानने की ओर बढ़ता है। सांसारिक वस्तुएं अस्थायी हैं, जबकि ईश्वर का अनुभव शाश्वत है।

 

समाज में अधिकतर लोग ईश्वर की बजाय भौतिकता का चयन कर रहे हैं, क्योंकि यह अधिक आसान और तात्कालिक सुख प्रदान करती है। परंतु सच यह है कि ईश्वर को पाना भी संभव है, बशर्ते हम अपनी दिशा बदलें और अपने मन को संसार की मृग-मरीचिका से हटा कर आत्मिक शांति और ईश्वर की ओर लगाएं।

 

निष्कर्ष

ईश्वर को पाना कठिन इसलिए नहीं है कि वह दुर्लभ हैं, बल्कि इसलिए कि हम उन्हें पाने के प्रयास ही नहीं करते। सांसारिक जीवन और उसके प्रलोभनों ने हमें अपनी आध्यात्मिक यात्रा से भटका दिया है। अगर हम वास्तव में ईश्वर की प्राप्ति चाहते हैं, तो हमें सांसारिक वस्तुओं की दौड़ को छोड़कर अपने भीतर की ओर देखना होगा। यही वह मार्ग है जो हमें ईश्वर के निकट ले जाएगा।

 

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