Aatma Aur Shareer ke rahasya आत्मा और शरीर के रहस्य

दोस्तों आत्मा और शरीर एक ऐसा विषय है जिसे प्रायः एक बार नहीं अनेक बारसुना होगा। हमारा शास्त्र कहता है आत्मा ना जन्मलेता है और नहीं आत्मा का मृत्यु होता है। शरीर प्रकृति की देन है और अंत में यह प्रकृति स्वत: हमसे छीन लेती है

ऐसा नहीं है की आत्मा के बारे में के बारे में आपने कभी सोचा नहीं होगा। हम इस आत्मा की बात कर रहे हैं जिस आत्मा के शरीर से निकल जाने के बाद यह दुनिया क्षण भर भी शरीर को संभाल कर नहीं रखना चाहता। यदि रखना भी चाहे तो वह रखकर करेगा क्या। जिस आत्मा के संयोग से जो शरीर कल तक हंसता था, गाता था। शरीर कल तक चलता भी था। शरीर कल तक नहाना प्रकार के क्रियाएं करता था। मृत्यु के उपरांत शरीर निष्क्रिय हो गया।

किसी के बस में नहीं होता कि वह वापस उसे शरीर में प्राण डाल दें। कारण सबको पता है आत्मा किसी का गुलाम नहीं होता। वास्तव में अपना शरीर भी किसी का गुलाम नहीं है। यदि बड़ी की से देखे तो पता चलता है शरीर सिर्फ और सिर्फ प्रकृति का गुलाम है।

दुनिया में वर्षों से शरीर के साथ-साथ आत्मा बहुत बड़े शोध का विषय रहा है। हमारे महान महात्माओं हमारे पूर्वजों ने अनेक तरीके से अनेक बार आत्मा और शरीर के ऊपर शोध किया। आज भी आत्मा और शरीर में जिसकी रुचि है वह शोध का विषय मानते हैं वे कोशिश करते हैं अधिक से अधिक समझने के लिए।

आत्मा को कौन गुलाम बना सकता है

 

हम यहां किसी दूसरे आत्मा की बात नहीं कर रहे । हम तो आपकी आत्मा और आपके शरीर की बात कर रहे हैं। कहते हैं धरती पर 84 लाख प्रकार के जीव रहते हैं। आपको क्या लगता है जितने प्रकार के जीव हैं क्या उतने प्रकार की आत्माएं भी होती हैं। आपको क्या लगता है आपका आत्मा और आपके सामने वाले का आत्मा दोनों अलग-अलग हैं। यदि आत्माएं सब की अलग-अलग है तो यह आत्माएं कौन से कारखाने में बना करती है।

हम आपको आत्मा और शरीर के विषय से अलग नहीं होने देंगें। अपनी आत्मा को समझने के लिए संसार के सभी आत्माओं को समझना होगा। अपने शरीर की भाषा अथवा शरीर की क्रिया को समझने के लिए। संसार के सभी जीवों का जो शरीर है उन सभी को समझना होगा। परंतु यदि एक-एक कर सभी जीवो की आत्मा को समझने में लगा जाए तो शायद करोड़ों जन्मों में भी हम आत्मा को नहीं समझ पाए।

 

आपने संसार में देखा होगा अनेक बार अनेक लोग ऐसे मिल जाते हैं जैसे लगता है उनके पास अनेक आत्मा गुलाम है। अनेक बार किसी ने अपने आप को प्रस्तुत किया होगा कि वह आत्माओं को अपने इशारों पर नचाया करता है। श्रीमद् भागवत गीता के माध्यम से भगवान कहते हैं आत्मा को कोई जला नहीं सकता, आत्मा पानी में भीग नहीं सकता, आत्मा को सुख या नहीं जा सकता। आत्मा ना जन्मता है और नहीं आत्मा मरता है।

ऐसे में क्या आपको यह लॉजिक अच्छा लगता है अथवा उन व्यक्तियों के लॉजिक पर विश्वास होता है। कि किसी ने अनेक आत्माओं को अपना गुलाम बना रखा है। क्या हम ईश्वर की बातों को झूठ ला सकते हैं। जब कोई आत्मा गुलाम बन सकता है तो वह आत्मा को किसी मृत शरीर में प्रवेश भी कर सकता है।

 

वेदांत तो आत्मा को साक्षात ईश्वर का अंश मानता है। वही वेदांत कहता है उसे ईश्वर को देखने वाला किसी को साबित नहीं कर सकता है कि मैं ईश्वर को देखा है। जो संसार में चिल्ला कर कहता है कि मैं ईश्वर को देखा है वह वास्तव में ईश्वर को देखा होता ही नहीं। यह उदाहरण हमने आत्मा के लिए कहा है।

 

एक तरीके से आत्मा को कोई गुलाम नहीं बन सकता। आत्मा को कोई देख भी नहीं सकता कहता है कि मैं आत्मा को देखा है। निश्चित तौर पर उसमें आत्मा को नहीं देखा। ऐसा नहीं है कि किसी ने आत्मा को देखा ही नहीं। परंतु यह कैसे हमारी ही बातों को हम कैसे काट सकते हैं। वास्तव में आत्मा अनुभव करने की चीज है। आत्मा अनुभव में तो आ सकता है परंतु व्यक्त नहीं किया जा सकता। आत्मा के विषय पर हम चर्चा कर सकते हैं चिंतन कर सकते हैं। जो आत्मा को देखने का दावा करता है वह वास्तव में संसार को भ्रम में डालकर अपना उल्लू सीधा कर रहा है। मेरे कहने का तात्पर्य आप समझ गए होंगे।

 

आत्मा और शरीर के बारे में जिज्ञासा होगा तो जान पायगा।

 

आत्मा और शरीर दोनों एक सिक्के के दो पहलू के जैसा हैं। एक के बिना एक का अस्तित्व नहीं है। ऐसे में आत्मा और शरीर का संयोग कैसे होता है और क्यों होता है। मरने से सबको डर लगता है। मृत्यु इस संसार का अब तक का सबसे बड़ा रहस्य है। मृत्यु के ऊपर से पर्दा उठाने का अनेक लोगों ने कोशिश किया। एक लोग मृत्यु का रहस्य समझने के लिए आज भी लगे हुए हैं। परंतु मृत्यु का रहस्य अब तक कोई समझ नहीं पाया। हम यहां समझने की कोशिश करेंगे, आखिर मृत्यु और जीवन का सच्चाई क्या है।

 

हम चिंतन करेंगे और निष्कर्ष तक पहुंचाने की कोशिश करेंगे की आत्मा का कार्य क्या है और शरीर का कार्य क्या है। मित्रों सच्चाई बहुत कड़वा होता है। कहते हैं ज्ञान की बात सबको अच्छा नहीं लगता। ज्ञान उसे ही अच्छा लगता है जिसके अंदर स्वत पहले से ज्ञान भरा हुआ होता है। हम यहां चिंतन के माध्यम से सभी का समय बिल्कुल खोटी नहीं करेंगे। ईश्वर ने निश्चित तौर पर कुछ तो हमें दे रखा है जिसके ऊपर हम विस्तार से बात को रखने आए हैं।

 

जैसे आपने अनेक बार सुना होगा घर में किसी की मृत्यु होता है। तो लोग कहते हैं वह व्यक्ति आसपास भटकता है। अभी अनेक प्रकार से डरा करते हैं। परंतु आपने कभी सोचा है मरा हुआ व्यक्ति अपने ही सगे संबंधियों के पीछे क्यों आता है। क्यों घर का एक-एक आदमी उसे मरे हुए व्यक्ति से डरा करते हैं। उसे मोहल्ले अथवा कॉलोनी में और भी अनेक लोग रहा करते हैं। परंतु वह मरा हुआ आत्मा किसी दूसरे के पीछे नहीं जाता।

 

व्यक्ति ने अनेक बार कहा होता है फलाना दुश्मन है। उसे व्यक्ति से बचकर रहना परंतु वही व्यक्ति जब मर जाता है तो वह अपनों के पीछे ही क्यों पड़ जाता है। यह बहुत चिंतन का विषय है। इस विषय पर सबको सोचना चाहिए।

 

उदाहरण कहता है जो खोजना है वह पता है। जो कोशिश करता है वह हासिल भी करता है। जो दरवाजा खटखटा आएगा उसका दरवाजा खुलेगा भी। परंतु यह जीवन और मृत्यु की बात है से हमें स्वयं ही समझने का कोशिश करना पड़ेगा। यहां किसी दूसरे का कोशिश कोई काम नहीं आएगा।

 

अगले भाग में आपको मिलेगा आत्मा मरने के बाद अपनों के पीछे ही क्यों पड़ा करती है। करने के बाद उसे दुश्मन के पीछे क्यों नहीं पड़ती जिन दुश्मनों को दिखा दिखा कर हमें सचेत किया करती है। वह आत्मा यदि करने के बाद दुश्मनों के पीछे पड़ जाए तो कितना अच्छा होता। फिर तो हमारे दुश्मन दुश्मन नहीं रह जाएंगे। मरने के बाद आत्मा दुश्मनों के पीछे क्यों नहीं जाती। आत्मा और शरीर की बातें बहुत गहरी है, दोस्तों यदि विषय से ऊब जाएं तो भी पढ़ना ना छोड़े। इस लेख में वह सब मिलेगा जो आपके जीवन को आनंद में बनाएगा। 

 

आत्मा और शरीर के बारे में सिर्फ सुना गया है

 

अभी तक हमने पढ़ा आत्मा और शरीर एक सिक्के के दो पहलू हैं। एक के बिना एक का अस्तित्व नहीं।

 

आगे यह जानने की कोशिश की आत्माएं सिर्फ अपनों के पीछे क्यों पड़ती है। आत्मा मरने के बाद किसी दुश्मन के पीछे क्यों नहीं पड़ती जिससे उसके अपनों का भला हो सके।

इस बात को भली-भांति समझने के लिए पहले हमें कुछ और समझना चाहिए। क्या वाकई में आत्मा होती है और यदि हां तो फिर वह किसी के पकड़ में क्यों नहीं आता। और यदि आत्मा नहीं होता है फिर वह क्या है जिसके शरीर से निकलने के बाद शरीर निष्क्रिय हो जाता है। आत्मा है और होती है यह बात आप एक बार नहीं अनेक बार सुन चुके हैं।

 

सबके दिलों में एक वहम है फलाना आत्मा फलाने के पीछे पड़ी है। क्या आप जानते हैं आज तक आपने जाने अनजाने में कितने हत्याएं करी हैं। 84 लाख प्रकार की धरती पर जीव बताए गए हैं। कुल चौरासी लाख जीवों में मच्छर कीड़े मकोड़े तथा अन्य प्रजाति के छोटे जीव भी हैं। क्या उन जीवों की आत्माएं नहीं होती। क्या कोई ऐसा रहेगा कि छोटे जीव की आत्मा नहीं होती। यदि बड़े जीव की आत्मा की बात करें तो फिर बड़े जीव भी अनेक प्रकार के हैं। जैसे हाथी, बैल, बड़ी मछली तथा अनेक प्रकार के जीव।

 

आत्मा को समझने के लिए इन सब जीवों के आत्माओं के ऊपर चिंतन करना होगा। हमारे हाथों से अनेक बार अनेंक मच्छर मरे। कभी कोई मच्छर की आत्मा हमारे पीछे नहीं पड़ीं। जो नॉनवेज खाया करते हैं वे न जाने अपने पूरे उम्र में कितने जीवों को खा गए। परंतु कोई जीवों की आत्मा उनके पीछे नहीं पड़ी। यदि दुनिया का लॉजिक कहता है की आत्मा पीछे पड़ जाया करती है। ऐसे में जिन्होंने एक जीव की हत्या करी उस जीव का उस व्यक्ति के पीछे पड़ना ज्यादा समझदारी वाला बात लगता है।

 

मैं अपने पीछे के बातों को फिर दोहराऊंगा। यह जगत में प्रचलित है आत्माएं परायों के पीछे नहीं अपनों के पीछे ही दौड़ा करती है। परन्तु यह बिल्कुल उल्टा लगता है, उल्टा लगता क्या है यह उल्टा है। यदि मैं सीधे शब्दों में कहूं आत्मा होती है परंतु वह किसी के पीछे नहीं पड़ती। इस समय सिद्ध करूंगा, संक्षेप में कारण सबको पता है आत्मा आज तक सिर्फ सुना गया है। आत्माओं की सिर्फ कथा व्यक्त की गई है।

 

ऐसा क्यों होता है, ऐसा कैसे जब आत्मा को किसी ने देखा ही नहीं फिर इतने सारे आत्माएं चर्चा में कैसे आ जाती है। जो सिद्ध महात्मा हुए अथवा हमारे वेद पुराण स्पष्ट कहते हैं। “मन ही संसार है” अर्थात यदि मन निकाल दे अथवा मन जो भावना है उसे निकाल दें फिर कोई चिंतन नहीं।

 

आत्मा और शरीर के बिच भावनाएं हैं

 

मछली में सेंस नहीं होता। एक मछली दूसरे मछली को खाता है। मछली को इस बात का डर नहीं है कि उसकी आत्मा उसके पीछे पड़ जाएगा। वैसे धरती पर अनेंक ऐसे जीव हैं जो अपने स्वरूप के जीव का भकछन नहीं करते। अर्थात विचार करें जिन जीवों का अपनें जाति के प्रति भावना है वह उन जीवों का संघार करने से डरते हैं अथवा संघार नहीं करते हैं।

 

जैसे शेर! दूसरे शेर से लड़ता तो है परंतु दूसरे शेर का मांस नहीं खाता। कुछ जीव धरती पर ऐसे हैं जो अपनें हीं जाति के जीव को मार कर खाते हैं। ऐसे जीव इतिहास में कभी पालतू नहीं हुए। कारण ऐसे जीवों के पास सेंस नहीं होता अथवा कह सकते हैं भावना नहीं होता।

 

यही हाल जब घर का कोई गुजर जाता है। यदि हमने गुजरते हुए नहीं देखा है अथवा हमारा उससे प्रेम संबंध नहीं है तो भी उतना दुख नहीं होता। यदि हमारे सामने कोई अपने शरीर का त्याग करता है अथवा जिससे हम प्रेम युक्त भावनाओं में बंधे हुए रहते हैं वह एक दो महीनो तक हम उसके चिंतन में रहते हैं। इसे एक और तरीके से समझा जा सकता है। हम रास्ते से रोज गुजरते हैं, हमने रास्ते में अनेक मरे हुए जीव अथवा एक्सीडेंट भी देखे होंगे।

 

कोई दूसरा जीव मरा हुआ रहता है उसके लिए हमारे दिल में कोई दर्द नहीं उत्पन्न होता। परंतु जब कोई मानव किसी एक्सीडेंट का शिकार होता है उसके लिए हमारे अंदर अनेंक भावनाएं उत्पन्न होता है। और यदि वह व्यक्ति हमारा अपना करीबी हो तो वह महीना और सालों तक भावनाओं में आते रहता है। क्यों कहे कि वह तो मर जाता है परंतु वह भावनाओं में आते रहता है, वह भावनाओं में जिंदा रहता है।

 

यहां चिंतन का विषय है , मरा हुआ व्यक्ति भावनाओं में आता है अथवा हम उसे भावनाओं में लाते हैं। अपने भावनाओं पर हमारा अपना कब्जा है। तुम्हारे भावनाओं पर किसी दूसरे का कब्जा नहीं है। अथवा हमारा अपनी भावनाएं किसी दूसरे का गुलाम नहीं है। हमारी भावनाएं सिर्फ हमारा गुलाम है।

 

मैं कहूं कि नहीं हमारी भावनाएं हमारे गुलाम नहीं है तो भी मानना पड़ेगा। आप सोच में पड़ जाएंगे यह कैसे। यह ऐसे की भावनाएं हमारे गुलाम नहीं है बल्कि हम अपनें भावनाओं के गुलाम हैं। बचपन से एक मजबूत भावना ने हमें गुलाम बना रखा है। एक ऐसा मजबूत भावना जिसे बनाने वाले स्वयं हम हैं। हमने अपने भावनाओं का निर्माण स्वयं किया है। यहां आश्चर्य वाली बात है हमने अपने भावनाओं का निर्माण तो किया है परंतु भावनाओं को तोड़ना हमारे बस की बात नहीं है।

 

वास्तव में आत्मा और शरीर का संयोग से हम क्रिया होते हुए देखते हैं। और शरीर को एक भावना जाकर जकर लेता है। कहें की जब शरीर एक भावनाओं के कैद में चला जाता है उसके बाद हमारी अपनी भावनाएं प्रतिक्रिया देने लगता है। वेदांत इसकी भावना से छूटने के लिए रास्ता बताता है। अथवा हम यह भी कर सकते हैं की भावनाओं से निकलने के लिए ही बड़े-बड़े महात्माओं ने अनेंको यत्न किए। प्राचीन काल से हीं महात्माओं अनेक प्रकार के अनुसंधान किये।

 

कहते हैं जो इस भावनाओं से निकल जाता है वह अमर हो जाते है। क्योंकि शरीर इस प्रकृति से मिला है और प्रकृति का है। आत्मा आता है और शरीर के साथ खेल-खेल कर चला जाता है। आत्मा जिसे कोई मार नहीं सकता , आत्मा सदैव के लिए अमर है। वास्तव में हमारे द्वारा निर्मित भावनाओं का ही खेल है कि हमें लगता है की आत्माएं हमारा पीछा कर रही है। आत्मा किसी का पीछा नहीं करता। वास्तव में हमारा भावनाएं ही हमारी पीछा किया करती है।

 

शरीर से निकलने के बाद आत्मा कहां जाती है

 

शरीर में आने के बाद आत्मा भावनाओं में कैसे बधकर कर जीवन गुजारा करती है। हम समझने के और करीब चलते हैं। गांव मोहल्ले में यदि कोई मरता है तो सुनकर हमें दुख पहुंचता है। परंतु वह दुख उतना ही दिखता है अथवा महसूस होता है ,जितना मरा हुआ इंसान करीब होता है। हमने कभी देखा नहीं है तो फिर दुख भी नहीं होता। यदि हमने देखा है और उसके साथ यदि हमारी भावनाएं जुड़ी हुई होती है तो वह दुख होता है और कितने दिनों तक दुख होता है।

 

सबको पता है शरीर से आत्मा जब निकलता है उस वक्त कुछ भी नजर नहीं आता। जैसा कि मैंने कहा आत्मा दिखता नहीं इसका मतलब यह नहीं कहा जा सकता की आत्मा नहीं होता। आत्मा शरीर के अंदर रहकर यह जग को प्रमाणित करता है कि मैं हूं और मेरी शक्ति है। आत्मा बार-बार कहता है मुझे कोई झूठला नहीं सकता क्योंकि मेरी शक्ति से ही शरीर शक्तिमान है।

 

जब आत्मा शरीर से निकलता है उसके बाद भी शरीर में सभी अंग मौजूद रहता है। परंतु आत्मा के निकल जाने के बाद आंखें रहते हुए काम करना बंद कर देता। दिल भी रहता है परंतु वह धड़कना बंद कर देता है। हाथ पैर सभी रहते हैं परंतु उसमें का शक्ति खत्म हो जाता है। शरीर के अंदर खून भी रहता है परंतु वह क्रिया करना बंद कर देता है। एक प्रकार से कहें तो आत्मा जब तक रहता है शरीर शक्तिमान रहता है और आत्मा जब जाता है तो वह शरीर की समस्त शक्तियों को निचोड़ कर चला जाता है।

 

जैसे हवा सामने तो रहता है परंतु दिखाई नजर नहीं आता। हम जिस ऑक्सीजन को लेकर हीं जीवित हैं वह ऑक्सीजन भी दिखाई नहीं देता। ऐसे अनेंक बहुत कुछ है जो आंखों से नजर नहीं आता परंतु हम यह नहीं कह सकते कि वह नहीं है। मैंने पीछे भी कहा है की आत्मा को व्यक्त नहीं किया जा सकता क्योंकि आत्मा नजर आने वाली वस्तु नहीं है।

 

वेदांत कहता है कि समस्त आत्माएं उस परमात्मा का अंश है। परमात्मा सर्वव्यापी है। इसे हम अलग प्रकार से समझने की कोशिश करेंगे। शरीर के लिए एक से बड़े एक वैज्ञानिक हुए परंतु उन्होंने यह स्थान नहीं बताया की आत्मा वास्तव में रहता कहां है, शरीर के किस हिस्से में रहता है। पहले कहा जाता था कि सब दिल के ऊपर निर्भर करता है। परंतु आजकल तो दिल भी बदले जा रहे हैं। ऐसे में आत्मा उस बदले हुए दिल में नहीं हो सकता। हम अपने शरीर के सभी अंगों पर आत्मा को अनुभव कर सकते हैं।

 

शरीर पर हम आत्मा को अनुभव कर सकते हैं, वह कैसे

 

यह भी एक आश्चर्यच है। जिस ‘मैं’ को हम मैं कहते हैं। वह “मैं” तो हाथों के उंगली में भी है और पैर की उंगली में भी। क्या हम अपने शरीर के ऊंचाई अथवा मोटी को देखकर हम आत्मा बड़े और छोटे का कल्पना कर सकते हैं। नहीं… ! आत्मा या तो वह बच्चे का शरीर हो अथवा बड़े का आत्मा तो अपने एक निश्चित साइज में है।

 

एक चींटी अथवा मच्छर के अंदर भी आत्माएं वही है। ऐसा नहीं है कि चींटी के अंदर छोटी आत्मा है और हाथी के अंदर बाद आत्मा है। यह ईश्वर का कमाल है अथवा यह कह सकते हैं कि इस प्रकृति का कमाल है। धरती का छोटा से छोटा जीव जो हमें नजर नहीं आता वह भी खाता है। वह भी गाता है, वह भी हंसता होगा। उसकी भी अपनी दुनिया है।

 

जिन जीवों की हम भाषा नहीं समझ सकते। जिन जीवों का हम भावना नहीं समझ सकते, उन जीवों के बारे में जो कुछ भी कहे वह एक कल्पना होगा। आत्मा और शरीर के बीच में यह जीव की चर्चा कैसे हो गई। मित्रों अपनी आत्मा को समझने के लिए इस संसार में जितने प्रकार की आत्माएं हमें नजर आता है उन सभीं को समझना होगा अथवा समझने की कोशिश करना होगा।

 

कहते हैं कि अपने से तो अपने आप को सभी बुद्धिमान कहा करते हैं। दोस्तों ऐसा कोई इंसान नहीं है जिसे भगवान ने बुद्धि ना दिया हो, बल ना दिया हो। परंतु सभी जीवों में इंसान अपने आप को सबसे बुद्धिमान समझता है। मेरे अनुसार से इंसानों में एक सबसे खास चीज है, कि वह सबको अपनी मुट्ठी में करने का बल रखता है। परंतु ऐसा नहीं है कि दूसरे जीवों का महत्व हम इंसान से कम हो।

 

धरती पर हमें अनेक प्रकार के जीव मिलते हैं, जो अपने बुद्धिमत्ता, गतिशीलता, और समर्थता के लिए प्रसिद्ध हैं। यहां कुछ उदाहरण हैं जो हमें यह सिखाते हैं कि जीवन की असीम सामर्थ्य और बुद्धिमत्ता किस प्रकार से विकसित होती है:

 

कॉरवेल कोबरा सांप: यह सांप अपनी बुद्धि और चालाकी के लिए प्रसिद्ध है। इसकी धारावाहिक गति और चेतना उसे अपने शिकार को पकड़ने में मदद करती है।

 

चिंगारी वाला कीड़ा: यह कीड़ा अपनी अत्यधिक गति के लिए प्रसिद्ध है, जो उसे उसके शिकार को पकड़ने में मदद करती है। इसका शरीर विशेष तरीके से विकसित होता है ताकि वह अपने लक्ष्य तक जल्दी से पहुंच सके।

 

पक्षी, जंगली जानवर, और समुद्री जीव: इन जीवों में भी अद्वितीय समस्याओं का सामना करने के लिए अनूठे तरीके से गुणवत्ता और उत्तरदायित्व देखा गया है। ऐसे समझ, समन्वय, और विनियमितता उन्हें अपने परिसर में सहनशील बनाती है।

 

इन उदाहरण से पता चलता है कि धरती पर जीवों में बुद्धिमानता, गतिशीलता, और समर्थता की अद्भुत विविधता है।

 

ऐसे में हम यह नहीं कह सकते हैं कि की धरती का एकमात्र बुद्धिमान जीव इंसान हैं। धरती पर जीवों में ममता एक ऐसी चीज है जिसे हम इंसान अनेक जीवन में महसूस कर सकते हैं। अधिकांश सभी जीवो में अपने बच्चों के प्रति ममता देखने को आया है। कहा गया है ममता एक प्राकृतिक गुण है।

 

इन बातों से यह सिद्ध हो गया की आत्मा का कोई रूप अथवा साइज नहीं है। या यह भी नहीं कह सकते हैं की आत्मा का कोई एक स्थान है। आत्मा एक कोने में भी बैठा हो सकता है और एक कोने में बैठकर शरीर के सभी अंगों में समान रूप से एक ही समय हो सकता है। अभी जैसा कि हमने कहा कि शरीर के अंदर स्थिति नहीं है। किसी को पता की आत्मा कहां बैठा है। वैसे ही शरीर से निकलने के बाद आत्मा इस संसार में कहां बैठा है यह कोई नहीं कह सकता।

 

आत्मा शरीर से निकल कर कहां जाता है

 

परंतु हम इन उदाहरण के आधार पर कह सकते हैं, आत्मा शरीर से निकल कर कहीं नहीं गया। आत्मा तो वही है जहां पहले था। ऐसा भी नहीं है की आत्मा यहां है तो चांद पर नहीं है। क्योंकि आत्मा प्रकृति का हिस्सा नहीं है आत्मा उस ईश्वर का हिस्सा है अथवा कह सकते हैं आत्मा इस ब्रह्मांड का हिस्सा है। एक हीं आत्मा ब्रह्मांड के कोने-कोने में स्थित पाया जा सकता है।

 

ईश्वर के लिए व्याख्या भी ऐसा ही कहा जाता है। ईश्वर आत्मा रूप से हमारे अंदर विराजमान है। और हमारे अंदर विराजमान हैं इसका मतलब यह नहीं कि वह दूसरे के अंदर नहीं है। क्योंकि ईश्वर आत्मा स्वरूप है और वह एक जगह रहकर भी अनेक जगह, अनेक रूपों में अनेकों शक्ति के साथ स्थित है।

 

आत्मा को समझने के लिए परमात्मा का चिंतन करना भी अनेक आवश्यक है। मैंने जैसा कहा की आत्मा शरीर से निकाल कर कहीं नहीं जाता, वह ब्रह्मांड का एक हिस्सा है और ब्रह्मांड में ही विलीन हो जाता है। हां यदि करने के उपरांत यदि कुछ जीवित रहता है तो वह भावनाएं जीवित रहता है।

 

क्योंकि शरीर में स्थित भावनाएं जिसे हमने स्वयं जन्म दिए हैं जिसका निर्माता भी हम स्वयं हैं। यह भावनाएं किसी का गुलाम नहीं है। भावनाओं का गुलाम हम हैं। जब शरीर से आत्मा निकलता है उस समय इन भावनाओं का आत्मा एक प्रकार से गुलाम होता है। मरने के उपरांत जीव अपनी भावनाओं के अनुरूप शरीर का तलाश करता है। प्रकृति में अनेक प्रकार के अनेंक जीव विचरण कर रहे हैं। शरीर से निकला हुआ भावना रूपी प्राण अपने अनुरूप जीवन तलाश करता है। उसे फिर इस दुनिया से कोई लेना देना नहीं होता। हां यह बात जरूर है कि उसके भावना को किसी दूसरी भावनाओं ने यदि कैद कर रखा हो। सीधे शब्दों में कहें कि मरे हुए इंसान की भावनाओं को यदि दूसरे भावनाओं ने मजबूर कर रखा हो। ऐसे में  वह भावनाएं अनिश्चितकाल तक उन अपने प्रेमी भावनाओं के इर्द-गिर्द घूम करती है।

 

इसलिए कहते हैं सब कुछ करो परन्तु अपने भावनाओं को गंदा मत करो। इन भावनाओं से स्वयं तुम ही आनंद उठाते हो और इन्हीं भावनाओं से दुख भी उठाते हो। यही भावनाएं कल्पनाओं में तुम्हें स्वर्ग का सुख भी देता है और कल्पनाओं में ही दुख भी दे जाता है। यह भावनाएं ही सर्वोपरि है।

 

अगले भाग में पढ़ें अपनी भावनाओं से कैसे खेले। क्योंकि जिस दिन आप अपने भावनाओं से खेलना सीख जाओगे उस दिन से आनंद नहीं परमानंद है।

 

आत्मा और शरीर को बिल्कुल अलग-अलग समझना होगा। जब तक बिल्कुल अलग-अलग रूप में नहीं देखेंगे, तब तक हम इन दोनों से भावनाओं को अलग नहीं देख पाएंगे। क्योंकि हमारी भावनाएं हीं है जो सब कुछ करने पर मजबूर करता है। ऐसा है की हम स्वयं बचपन से अपनें भावनाओं के निर्माण करता है और आज भावनाओं के गुलाम बन कर बैठे हैं।

 

जिस बच्चे को जिस रूप में जैसा संसाधन और स्थिति मिलता है उस अनुसार से उसकी भावनाओं का निर्माण होता है। बचपन से एक मानव का जो बुद्धि विकास होता है वह उसके निरंतर इच्छाओं के ऊपर आधारित होता है। इच्छा आकर्षण पैदा करता है, आकर्षण से व्यक्ति उस वस्तु तथा तत्व के करीब जाता है। सीधे तौर से कहें कि जिसकी जैसी भावना होती है उसके अनुरूप वह ज्ञान अर्जन करता है अथवा ज्ञान का संचय करता है।

 

एक छोटे से बच्चे को जो-जो चीज दिया जाता है। वह उन चीजों को भावनाओं में क्रिएट करता है। बचपन से वह जिस वस्तु के साथ संयोग‌‌ में रहता है उसके अंदर उससे संबंधित भावनाएं अधिकायक होता है।

 

आत्मा और शरीर से कल्पना

 

मानव बचपन से दिन में चाहत के अनुसार काल्पनिक सपने देखता है। वह उसे अपने समर्थ के अनुसार कोशिश कर सच में तब्दील करने की कोशिश करता है। दिन के सपनें और काल्पनिक दुनिया उसका इतना मजबूत हो जाता है कि वह रात में भी इस भावनाओं में खोया रहता है। जिसका परिणाम रात का स्वप्न नजर आता है।

 

एक छोटे से बच्चे को हम कोई भी खिलौने अथवा वस्तु दें। वह उसे अपने हृदय के अंदर किस प्रकार लगाएगा अथवा उसका मस्तिष्क उसे वस्तु को किस प्रकार स्वीकार करेगा है यह कोई नहीं कह सकता। किसके अंदर कौन सा इच्छा पनप रहा है यह कोई बात समझ नहीं सकता। इच्छा एक शारीरिक प्रतिक्रिया है।  जिसे कोई बदल नहीं सकता और न ही अपने से परिवर्तित कर सकता है।

 

आज मनुष्य समाज में सभी व्यक्ति का अपना-अपना लक्ष्य है, इच्छा है, सोच है। कौन सा व्यक्ति, कौन से मुद्दे अथवा सपने को ज्यादा महत्व देता है, यह वह स्वयं जानता है। यह निर्भर करता है कि व्यक्ति के अंदर कौन से भावनाओं का जाल है। कोई परिवार को महत्व देता है। कोई परिवार में माता-पिता को महत्व देता है। कोई परिवार में पत्नी अथवा बच्चों को महत्व देता है। कोई दोस्तों को महत्व देता है, कोई दोस्तों से मिलने वाले सुख को महत्व देता है।

 

इसी प्रकार कोई धन को महत्व देता है। कोई ऐसा भी है जो नाम को महत्व देता है। कोई ऐसा है जो आराम को महत्व देता है। कोई ऐसा है जो पर्सनल सेटिस्फेक्शन को महत्व देता है। कोई एक ऐसा है जो अपने अहम को महत्व देता है। इस आधार पर देखा जाए तो मनुष्य के अपनी-अपनी प्राथमिकताएं हैं, और यहां सब स्वयं के अपनें भावनाओं के ऊपर निर्भर है।

 

यह भावनाओं का जाल जब छोटा बच्चा होता है तब से बनना चालू होता है। इसीलिए कहते हैं की मां-बाप का संस्कार बच्चों के ऊपर आधिकाधिक पड़ता है।  बच्चा बचपन से जिस वस्तु के साथ, जिस व्यक्ति के साथ, जिस प्रकृति के साथ रहता है, उसका सबसे ज्यादा प्रभाव उसपर पड़ता है। भावनाएं उत्तम भी हो सकता है, माध्यम भी हो सकता है अथवा भावनाएं अशुद्ध भी हो सकता है।

 

भावनाएं ऐसा नहीं है की दूसरा कोई किसी और के अंदर उत्पन्न कर सकता  है। यह भावनाएं स्वयं अपने आप से जिस परिवेश में जिस परिस्थिति में रहते हैं वह अपने आप निर्माण होता है। परंतु उस भावनाओं के निर्माण होने का मुख्य कारण हम स्वयं हैं। क्योंकि हम किसके साथ रहेंगे, किस वस्तु का साथ लेंगे, यह सब कुछ हमारे स्वयं के निर्णय के ऊपर आधारित होता है।

 

जैसे उदाहरण के तौर पर किसी को खाने में अधिक रुचि है, परंतु उसका पेट साथ नहीं देता। कभी कभी देखने में आया है कि व्यक्ति अपने आप के खाने पर कंट्रोल नहीं रख सकता। वह जीवन में अनेक बार खाने को लेकर परेशानी उठा चुका है। परंतु फिर भी उसकी भावनाएं हैं , जो उसका पीछा नहीं छोड़ता है। वह सदैव अपनें शरीर के विपरीत भोजन करता है और पचा नहीं पता। वह अनेंक बार चाहता है कि मैं आगे से ऐसा भोजन ग्रहण नहीं करूं। परंतु उसका दिल मानता नहीं वह अपने भावनाओं के जाल में ऐसा जकड़ा हुआ है कि उसका अपना भावनाएं ही पीछा नहीं छोड़ता।

 

वह अपने भावनाओं की वजह से फिर उस वास्तु के करीब जाता है, उस व्यक्ति के करीब जाता है,जो उसके लायक नहीं अथवा अनुरूप नहीं। जीवन पर्यंत भावनाएं व्यक्ति के ऊपर हावी रहता है और वह भावनाओं से परवश हुआ सदैव न करने योग्य कर्म करते रहता है और दुःख उठाता है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ भावनाएं विपरीत कार्य करने देता है। मैंने यहां पर भावनाओं का एक उदाहरण पेश किया है

 

भावनाएं किस प्रकार काम किया करती है।

 

जिस व्यक्ति के अंदर उत्तम श्रेणी की भावनाएं हैं, ऐसी भावनाएं उसका सबसे बड़ा सहयोगी भी बनता है। क्योंकि इस उत्तम श्रेणी के भावनाओं के कारण वह जीवन में निरंतर संघर्ष करता है और एक दिन निरंतर संघर्ष उसे सफलता की ऊंचे सिंहासन पर बैठाते है। परंतु एक आश्चर्य की बात है, भावनाएं अच्छी हो या बुरी अंत समय तक अपनें जाल में बांधे रहता है। अपनी हीं भावनाएं कभी सुख देता है और कभी दुख भी देता है।

 

जब तक व्यक्ति भावनाओं से खेलने ना सीख जाए, तब तक तो भावनाएं हीं व्यक्ति के साथ खेल खेलती रहेगी। श्रीमद्भागवत गीता सदैव एक हीं बात करता है ‘समत्व योग’ का अनुसरण करो।

 

“समत्व योग विपरीत भावनाओं से लड़ने का शक्ति देता है। अर्थात सुख और दुख में समान व्यवहार करना अथवा रखना।”

 

अपने भावनाओं को ज्यादा हतोत्साहित न होने देना अथवा बहुत ज्यादा उत्साहित भी न होने देना। यह एक बहुत बड़ा योग है। जैसे-जैसे यह योग सिद्ध होने लगेगा आप भावनाओं से खेल खेलना सीख जाओगे।

 

ऐसा भी नहीं है की भावनाएं तब पीछा छोड़ देंगी। परंतु उस समय भावनाओं का लगाम अपने स्वयं के हाथों में होगा। व्यक्ति उस समय भावनाओं के साथ‌ किसी भी खाई में जाने को तैयार नहीं होगा। इसके पीछे भी एक कारण है, भावनाएं शरीर के अंग के खुशामद करने के लिए सदैव लगी रहती है। भावनाओं का मानो ऐसा काम है कि वह शरीर के अंगों की गुलामी करने के सिवा और कुछ सोच हीं नहीं सकती। जिसके वजह से व्यक्ति को अनेक प्रकार के उलझनों का सामना करना पड़ता है।

 

सबको पता है शरीर का अंग बहुत कुछ कहता है परंतु जहां सामाजिकता और बुद्धि की बात हो , वह हर विपरीत कार्य की अनुमति नहीं देता। परंतु बार-बार ऐसा होता है  व्यक्ति अपने अंदर अनुभव कर सकता है। अनेंक बार भावनाएं अधोगति की तरफ लेकर जाने का प्रयास करती है। जिस‌ व्यक्ति का लगाम अपनी भावनाओं पर नहीं होता तो वह भावनाओं के पीछे भागकर समाप्त हो जाता है। नहीं तो वह ऐसे रास्ते पर चल पड़ता है जहां से वापस आने रास्ता नहीं होता।

 

जीवन में भावनाओं पर कैसे लगाम लगाया जाए यह सीखना अत्यंत आवश्यक है। “आत्मा और शरीर ” यह विषय जरूर हीं कुछ उबाऊ सा हो सकता है, ‌ परंतु जिनको इसमें रुचि होगी वह इसे बहुत गहरे से समझने की कोशिश करेंगे। निरंतर अपने भावनाओं के लगाम को अपने हाथ में रखना होगा। जिस दिन भावनाएं आपकी अनुरूप चलने लगेगी उसी दिन शरीर और आत्मा का रहस्य भी समझ में आ जाएगा। आत्मा का रहस्य समझने के उपरांत ईश्वर अथवा ईश्वर की शक्ति स्वत: समझ जाएंगे।

 

मित्रों मुझे पता है बहुत कम ऐसे व्यक्ति होते हैं जो अपनें अंतर भावना ‌का‌ स्वयं से विश्लेषण करते हैं, अथवा समझने की कोशिश करते हैं। क्योंकि यह प्रमाणित है जो अपने अंतर भावना का विश्लेषण करने में लग जाए वह अपने आप के भावना में सुधार भी कर सकते हैं। यह लेख पढ़ने और समय देने के लिए आपका विशेष धन्यवाद।

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नम्र निवेदन –

Aatma Aur Shareer ke rahasya

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