अपने अंदर प्रेम का विस्तार कैसे करें,प्रेम क्या खोजता है,कौन है जिसे प्रेम नहीं चाहिए, प्रेम सब के नजरों में अलग-अलग कैसे,क्या प्रकृति हम से प्रेम नहीं खोजता, प्रेम को क्या चाहिए, प्रेम का वास्तविक हकदार कौन,प्रेम का रंग और वास्तविक परिभाषा
प्रेम वहां से शुरू होता है, जहां बुद्धि अपना कार्य छोड़ देता है। इसीलिए इतिहास में अनेक महामानव यह बात दर्शा कर गए, प्रेम तो संसार में परम पवित्र तत्व है।
सांसारिक दृष्टि से देखें तो प्रेम वह तत्व है, जिसमें जीने में भी मजा है और मरने में भी। जब प्रेम होता है तो मानो दिल बार बार रोता है। प्रेम में गिरा हुआ एक-एक आंसू भी संसार में किसी अमृत से कम नही
अपने अंदर प्रेम का विस्तार
अपने अंदर प्रेम का विस्तार करें।वास्तविक प्रेम बयां करना बहुत मुश्किल लगता है। यह बात तो वास्तव में प्रेमिका बिना प्रेमी के अकेले में अपने प्रेमिका के लिए करती है।
यहां प्रेमिका का अर्थ सिर्फ स्त्री अथवा लड़की नहीं है, प्रेम करने वाला प्रेमिका है और प्रेम पाने वाला प्रेमी है।
प्रेम तो वह तत्व है जिसमें प्रेमिका को एक-एक आंसू मानो जन्नत का आनंद देता हो। इसीलिए हमारा सदैव कथन रहता है, जीवन को जीने में तकलीफ है, मरने के बाद तो आनंद ही आनंद
है। इस प्रकार का प्रेम यदि कुछ क्षण के लिए हो, तो इसका मजा तो प्रेमिका ही समझती है। प्रेम में जीवन जीने वाला हर समय, हर क्षण, पल-पल प्रेम में ही जीता है। यदि वास्तविक प्रेम पाना है, तो सर्वप्रथम वास्तविकता तो अपने प्रेम में लाना होगा।
बिना हमारे समर्पण के हम सिर्फ सामने वाले का समर्पण का इच्छा करें, तो यह गलत होगा। किसी का प्रेम पाने के लिए, अपना बुद्धि नही लगाएं, प्रेमी के लिए अपने अंदर प्रेम को जागृत करें, आजीवन के लिए उसका प्रेमीका बन जाए। वास्तविक प्रेम में इच्छा , द्वेष, बदला, आवश्यकता तथा नफरत जैसे तत्व का कोई स्थान नहीं होता।
प्रेम की खोज
प्रेम सदैव के लिए त्याग खोजता है।इस प्रकृति में शायद ही ऐसा कोई जीव है जो प्रेम नहीं करता। प्रेम को क्या चाहिए, प्रेम को सिर्फ प्रेम चाहिए। यदि करीब से देखें तो एक मानव कितने प्रकार का प्रेम करता है।
सर्वप्रथम तो व्यक्ति अपने आप से प्रेम करता है, अपने जीवन से प्रेम करता है। अपने जीवन से संबंधित वस्तुओं से प्रेम करता है तथा जीवन के लिए जरूरी आवश्यकता उनसे प्रेम करता है।
प्रेम की गहराई कितनी है, ये समझ पाना और समझा पाना अनेक कठिन होता है। एक व्यक्ति खाने में अनेक प्रकार की सामग्री बहुत पसंद करता है, जबकि वही पसंद आने वाली सामग्री दूसरे को पसंद नहीं होता। एक व्यक्ति को कुछ गिनती के रंग पसंद करते हैं, वहीं दूसरा व्यक्ति को उन रंगों को पसंद नहीं करता।
प्रेम सब के नजरों में अलग-अलग
दोष न हीं खाने की सामग्री में है, न हीं दिखने वाले रंगों में है। इसे हम प्रेम की विभिन्नताएं कहेंगे। एक ही दृश्य से कुछ लोग प्रेम करते हैं। एक ही दृश्य के ऊपर सब का वक्तव्य अलग अलग होता है।
यहां हम प्रेम को इच्छा के रूप में मानते हैं। क्योंकि नि:स्वार्थ प्रेम का परिभाषा अलग होगा। इच्छा रूपी प्रेम निरंतर एक सामान नहीं रहता। इच्छा वाले प्रेम की वजह से ही व्यक्ति संसार में नाना प्रकार के तकलीफों को झेलता है।
उदाहरण के लिए आज कोई व्यक्ति एक नया मोबाइल खरीद करता है, आज उसकी दृष्टि सबसे उत्तम की है। यहां वह अपना दिल और दिमाग दोनों को लगाकर खरीद करता है। वह उस मोबाइल का अनेक प्रकार से अनेक जगह तारीफ भी करता है।
कुछ दिन उपरांत जब वह नई मॉडल का मोबाइल देखता है और वह नई तरफ आकर्षित हो जाता है। अब उसे अपना पुराना मोबाइल छोटा सा जान पड़ता है। उसे अपने उस पुराने मोबाइल से वह आनंद नहीं मिलता जो नया नया में आनंद मिला था।
यहां विचार करने वाली बात है ,दोष किस में है। मोबाइल भी वही है और व्यक्ति भी वही है। दोष सिर्फ अपने नजर का है और भावना का है। बहुत बार ऐसा होता है किस प्रकार की सोच व्यक्ति विशेष के लिए भी हो जाता है। जो वास्तव में जीवन के दौर में इस प्रकार का नहीं होना चाहिए।
प्रेम करने वाला व्यक्ति किसी से प्रेम तो कर लेता, परंतु उसको निभा नहीं पाता। यदि वास्तविकता की बात करें तो प्रेम करने से कहीं गुना कठिन काम है प्रेम को निभाना। प्रेम में पर्दे एक तरफ नहीं होते हैं दोनों तरफ आंखों पर पट्टी बंधा रहता है।
इसलिए दोनों के मिलने के बाद और जीवन शुरू करने के बाद निश्चित तौर पर दोनों को ही आपस में समझौता करना चाहिए। इसमें दोनों को ही अपने अहम का त्याग करना होगा।
व्यक्ति प्रेम करने में अनेकों त्याग कर चुका होता है और यहां बाद में त्याग करने में कठिनाई होता है। व्यक्ति को अपने अंदर की प्रेम प्रकृति को समझना होगा, और अपने अंदर सामंजस्य बिठाकर साथ साथ चलना होगा।
कौन है जिसे प्रेम नहीं चाहिए?
कोई ऐसा नहीं जिसे प्रेम की आवश्यकता नहीं।कहते हैं धरती पर यदि सबसे कोई खतरनाक जीव है तो वह है मानव! एक शेर हिरण का शिकार करता है क्यों? क्योंकि वह घास नहीं खा सकता। मानव अपने स्वार्थ सिद्ध करने के लिए, धन का संचय करने के लिए बेवजह प्रकृति में अनेकों गुनाह करता है।
इन सबके बावजूद प्रेम सबको चाहिए। व्यक्ति किसी भी उम्र का हो या किसी भी धर्म जाति – समूह का हो। सब चाहते हैं हमारे अपने हम से प्रेम करें। सभीं चाहते हमारे अपने तो सम्मान करें साथ-साथ संसार हमें अधिक से अधिक सम्मान करें।
इस प्रेम को समझने के लिए कहीं दूर जाने की आवश्यकता नहीं है। घर के अंदर एक पाला हुआ जीव भी हमेशा चाहता है हम उसके साथ प्रेम करे। एक छोटा बच्चा समझता है कि माता-पिता में हमसे ज्यादा प्रेम करने वाला कौन है।
हर मां-बाप समझता है कि हमारे बच्चे किस से प्रेम ज्यादा करते हैं। प्रेम का आधार यहां कुछ भी हो सकता है। प्रेम एक बगल में चिड़ियों को देखकर समझ में आ सकता है।
चिड़िया अपने बच्चे के लिए कितना यत्न करती है। एक चिड़िया दिन भर अपने बच्चे के लिए दाना चुगती रहती है। वहीं चिड़िया के बच्चे जब बड़े होकर उड़ जाते हैं, आगे चलकर बिछड़ जाते हैं तो वहां भी चिड़िया को तकलीफ होता है। क्योंकि चिड़िया को भी संसार में प्रेम चाहिए।
एक प्रकार से अपना ही प्रेम दर्पण का बाहर प्रतिबिंब है।
संसार से यदि प्रेम चाहिए तो व्यक्ति को भी संसार से प्रेम करना पड़ेगा। संसार के हर व्यक्ति से प्रेम करना पड़ेगा। संसार में अधिक क्रोध का वितरण करेंगे तो पलट कर हमें क्रोध ही मिलेगा।
संसार में यदि हम लालच का वितरण करेंगे तो पलट कर हमें लालच मिलेगा। मानव को यदि प्रेम का जरूरत नहीं होता तो शायद आज इतना बड़ा समाज का निर्माण नहीं होता। संसार में सभी प्रेम के भूखे हैं। प्रेम तो सभी एक ही है परंतु प्रेम का आधार अलग-अलग है।
क्या प्रकृति हम से प्रेम नहीं खोजता?
सभी को पता है संसार में प्रकृति है तो हम सब हैं और यदि प्रकृति नहीं तो हम सब भी नहीं। एक पेड़ की बात करें तो पेड़ को हमसे क्या चाहिए। वास्तव में पेड़ तो हमसे कुछ लेता ही नहीं बल्कि वह तो संसार में सिर्फ देता ही जा रहा।
एक नन्हा सा पेड़ जो हमारे सामने हैं वह हमसे क्या कहता है। हे मानव हम तो तेरे लिए आए हैं, हम तुझसे बहुत ज्यादा की उम्मीद नहीं करते। हम तो सिर्फ इतना चाहते हैं संसार में तू भी जीवित रह और मुझे भी जीने दे। बेवजह हमारा शोषण मत कर हम तो तेरे भले के लिए खड़े हैं। विचार करें तो पता चलेगा पेड़ों का हमारे ऊपर कितना उपकार है।
क्या हमारे सामने खड़ा हुआ पेड़ इतना भी प्रेम का हकदार नहीं है। एक बार एक पेड़ को अथवा पत्तों को छू कर देखो वह पेड़ तुमसे क्या कहता है।
एक पेड़ बार-बार यही कहता है तुम हम से प्रेम करो हम तुमसे प्रेम करें। हे मानव आ जाओ मेरी छांव में, आ जाओ मेरी डाली पर। तुम हम से प्रेम करो और हम तुमसे प्रेम करें।
व्यक्ति को प्रेम चाहिए और प्रेम को क्या चाहिए?
प्रेम की परिभाषा का कोई सीमा नहीं हो सकता। किसी व्यक्ति को प्रेम चाहिए और प्रेम को क्या चाहिए। हर कला कहता है मुझसे प्रेम करो। हर कला कहता है तुम मुझ में समा जाओ मैं तुम्हें अपने अंदर समा लूंगा।
व्यक्ति के अंदर जब क्रोध आता है तो हर तरफ जलन सा महसूस होता है। उस समय ऐसा लगता है मानो सब कुछ जला देने पर तुला हुआ है।
जब यदि प्रेम फैलता है तो मानो हर तरफ ताजगी ही ताजगी हो। उस समय ऐसा लगता है मानो दुनिया में प्रेम के सिवा और कुछ भी नहीं। क्रोध तो क्रोध करने वाले को भी जलाता है और दूसरों को भी । परंतु प्रेम सबको आनंद देता है वह प्रकृति हो अथवा जानवर।
एक गायक तो कहता है हम से प्रेम करो। गायक के द्वारा गाया हुआ गाना भी कहता है हम से प्रेम करो मैं तुम्हें आनंद दूंगा। प्रकृति रूपी पेड़ कहता है तुम हम से प्रेम करो मैं तुम्हें आनंद दूंगा।
हमारे सभी अपने कहते हैं तुम हम से प्रेम करो मैं तुम्हें आनंद दूंगा। हमारे अंदर जो विशेष कला है वह कला कहता है तुम हम से प्रेम करो मैं तुम्हें आनंद दूंगा। हमारे अपने एक-एक शब्द कहते हैं तुम हम से प्रेम करो मैं तुम्हें आनंद दूंगा।
प्रेम को तो प्रेम ही चाहिए उसके लिए हमें अपने अंदर प्रेम के समंदर में तूफान लाना होगा। प्रेम का धारा इतना तीव्र हो की समस्त दुनिया उसमें डूब जाए। प्रेम को क्या चाहिए प्रेम को सिर्फ प्रेम चाहिए।
प्रेम की यात्रा किसके लिए है? प्रेम का वास्तविक हकदार कौन?
एक पुरानी कहावत है
“इश्क नहीं आसान इतना एक आग का दरिया है और डूब कर जाना है।”निश्चित तौर पर इस एक आग का दरिया है फिर भी व्यक्ति डूबने को बेचैन रहता है। यहां पर यह नहीं कहा जा रहा कि आप हवस में अंधे हो जाओ। क्योंकि हवस का अंधापन निश्चित तौर पर व्यक्ति को ले डूबता है।
यदि वास्तविकता से विचार करें तो बचपन से व्यक्ति ने अपने लिए जैसा संसार बनाया है। वह अपने भावनाओं के द्वारा गुलाम हुए जो संसार के सामने प्रस्तुत किया है उसे वही मिल रहा है। बिगड़े हुए अतीत को कोई बदल सके यह किसी के बस की बात नहीं।
व्यक्ति चाहे तो अपने विचारों की शुद्धि से भविष्य को सुधार सकता है। प्रेम कोई खाने की वस्तु नहीं। प्रेम तो व्यक्ति अपने अंदर महसूस करता है। वास्तविक प्रेम अपने अंदर त्याग की भावना जागृत करता है। सीधी तौर से कहें तो वास्तविक प्रेम व्यक्ति को त्याग करना सिखा देता है।
जब व्यक्ति के अंदर त्याग करने की धारा चल पड़ता है तो उसका इच्छा स्थिर हो जाता है। उसके बाद उसे और कुछ नहीं चाहिए । उसके आगे उसके जीवन में जो कुछ भी स्वत: मिलेगा व्यक्ति उसी से आनंद में डूबा रहेगा।
इसीलिए हमारे महात्मा कहते हैं “एक अपने परमेश्वर से प्रेम करो और दुनिया में उनके द्वारा बताए हुए कर्म को भलीभांति करो।” इन बातों के अंदर विरोधाभास है परंतु वास्तव में दोनों एक ही है। सनातन सत्य व्यक्ति को अपना दृष्टि हीं बदलने की बात करता है।
प्रेम और सम्मान स्वर्ग कैसे हो सकता है?
सम्मान प्रेम का ही दूसरा रूप है। जब व्यक्ति के लिए किसी दूसरे के अंदर प्रेम जागृत होता है तो वह उसके लिए सम्मान पेश करता है। सभी प्रकार के साहित्य दर्शन अपने शब्दों में यही कहते हैं कि यातना नर्क है और आनंद स्वर्ग है।
यातना अनेकों प्रकार के होते हैं उनमें मुख्य है शारीरिक और मानसिक। यातना तो यातना ही होता है, शास्त्रों में इस लोक से लेकर परलोक तक में भी यात्रा का जिक्र किया गया है। इसी प्रकार आनंद का भी इस लोक से लेकर परलोक तक का जिक्र किया गया।
जिसके जीवन में प्रेम की वर्षा है यह संसार उसके लिए स्वर्ग है।
इस लोक में जो जीवित हैं उसे तो सब पता है कि इस लोक में स्वर्ग क्या है और नर्क क्या है। परलोक की बातें तो चर्चा का विषय होता है। आज तुम अपना कर्म सुधार लो तुम्हारा परलोक सुधर जाएगा। परलोक में कर्म के अनुसार जिसके साथ जो होना है वह तो होगा।
यदि चिंतन करें तो इस लोक में भी स्वर्ग और नर्क है। अब बात आता है स्वर्ग कहां है और नर्स कहां है। वास्तव में दोनों ही आपको अपने आंखों से दिख जाएगा, दोनों आपके घर में आपके अगल-बगल और आपके आसपास में मिल जाएगा।
स्वर्ग और नर्क एक व्यक्ति के अंदर भी मिल सकता है। यदि कोई व्यक्ति प्रेम और सम्मान से लबालब जीवन को जी रहा हो तो यहीं जीवन उसके लिए स्वर्ग है। इसी संसार में कोई ऐसा व्यक्ति हो जो अनेक तकलीफ और कठिनाइयों में जी रहा हो तो उसके लिए यहीं नर्क हो सकता है।
संसार में ऐसे व्यक्ति भी मिल जाएंगे जो परमेश्वर से अपने लिए रोज मौत मांगते हैं परंतु उन्हें जल्दी मौत भी नहीं आता। ऐसी तकलीफ में जीवन को जीने वाले के लिए यही संसार नर्क है।
स्वयं के अंदर स्थित प्रेम को समझना भी एक बहुत बड़ा शोध का विषय है, इसलिए शोध करना होगा
सम्मान के बाद ही प्रेम शुरू होता है। इस दृष्टि से प्रेम सर्वोपरि है। इसी जीवन में जिसे भरपूर प्रेम मिल रहा हो उसके लिए यह दुनिया ही स्वर्ग है। यहां पर एक विशेष बात है प्रेम सिर्फ लेने की सोचने से नहीं होगा।
प्रेम का शुरुआत तो स्वयं करना होगा। अपने अंदर प्रेम का शुरुआत करो, अपने प्रेम का दायरा बढ़ाओ। जब प्रेम का दायरा बढ़ेगा तो उसी समय प्रेम में तुम स्वयं भी डूब जाओगे। निकल पड़ो अपने प्रेम यात्रा पड़
Story Analyse
प्रेम का विस्तार करने के लिए, आपको अपने अंदर के सबको आंशिकता और समर्थन के साथ स्वीकार करने की क्षमता होनी चाहिए। प्रेम सच्चाई, समर्थन, संवेदनशीलता, और समर्पण का खोज करता है। जो व्यक्ति अपने निजी हितों के लिए स्वार्थपर होता है, उसे प्रेम की सही अनुभूति नहीं होती। प्रेम की परिभाषा और रंग व्यक्ति से व्यक्ति भिन्न हो सकते हैं, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के अनुभव और संदर्भ अलग होते हैं। प्रेम को असली रूप में समझने के लिए, विनम्रता, समर्थन, समझदारी, और समर्पण की आवश्यकता होती है। प्रेम का वास्तविक हकदार वह है जो स्वीकार करता है, समर्थन करता है, और साथी की जरूरतों का ध्यान रखता है।
नम्र निवेदन –
Prem Bhavana
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