भारत के महामानव अतुलनीय स्वामी विवेकानंद,भारतीय संस्कृति में विशेष क्या है,क्या आंखें मूंद लेने से वास्तविकता बदल जाता है, विवेकानंद जी के अनमोल शब्द,
भारत ऐसे ही महान देश नहीं कहा जाता,विशाल भारत! आज के नौजवान यदि इतिहास को सर्च करेंगे तो उन्हें पता चलेगा, कि आज के समय जितने देश बहुत आगे हैं, उनका पिछला इतिहास क्या रहा है।
सभी अपने आप को बड़ा बनाने के लिए एक दूसरे से प्राय: संघर्ष करते रहे। परंतु भारत ने अपने आप को बड़ा बनाने के लिए, इतिहास में भी कभी किसी से संघर्ष नहीं किया।
भारतीय संस्कृति में विशेष क्या है?
भारतीय संस्कृति अनेक पद्धति का मिश्रण है।भारत का जो सनातन इतिहास रहा है, उसमें वसुधैव कुटुंबकम का विशेष स्थान रहा है।
अर्थात भारत ने सदैव यह माना कि यह संपूर्ण विश्व एक परिवार है। इसमें भी एक खास है कि सनातन धर्म कभी भी किसी को भी ईष्ट को मानने के लिए बाध्य नहीं करता।
कोई किसी भी देव को माने यह उसकी अपनी मर्जी के ऊपर आधारित होता है। इस कारण से भारत में उस परमेश्वर के पास पहुंचने के लिए प्राचीन में लाखों महामानवों ने अपने अनुसार से प्रयत्न कीए। इसलिए सनातन में एक पद्धति नहीं रहा यहां पर अनेक पद्धति हैं।
भारत में सभीं भाषा जाति- धर्म के धर्मअनुयायियों ने अपने-अपने अनुसार से परमेश्वर प्राप्ति के लिए प्रयत्न किए। यह भारत के लिए छोटी नहीं बहुत बड़ी बात है, दूसरे देशों में एक दो अथवा चार मत चला करते हैं, पर यहां अनेकों मत चला करते हैं।
क्या आंखें मूंद लेने से वास्तविकता बदल जाता है?
स्वामी जी ने वास्तविकता को पेश किया,यह भारत की विशालता है, आज यह बहुत अफसोस की बात है कि हम प्राचीन महामानव के शब्द को छोड़कर, नये शब्दों की पोस्टमार्टम करने में उलझ कर रह जाते हैं।
कहावत है ‘बाल की खाल निकालना।’ चलना तो सबको अपने आप ही है परंतु उदाहरण तो इतिहास से ही लेना होगा। भारत में इतने महामानव हुए हैं जिनकी गिनती नहीं हो सकता, और एक दृष्टि से सभीं अपने आप में पूर्ण हुए। आज हम बात करेंगे महामानव स्वामी श्री विवेकानंद की।
स्वामी जी की वाणी आज पूरे विश्व में गूंज रहा है। जिनके शब्दों नें सिर्फ अपने देश में नहीं विदेश में भी अमित छाप छोड़ी है। उनके बारे में सभीं धर्मावलंबी बखूबी जानते हैं।
उनके संबंध में जितना कुछ कहा जाए कम है। भारत के लिए स्वामी विवेकानंद इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि भारतीय संस्कृति के लिए उनका जो योगदान है उसका तुलना किसी से नहीं हो सकता।
स्वामी जी अंधविश्वास से दूर उन्होंने अपने शब्दों के जरिए वास्तविकता को प्रस्तुत किया।
स्वामी जी ने उस वास्तविकता को रखा जिस वास्तविकता को विज्ञान भी झुठला नहीं सकता। क्योंकि यह सत्य है आंखें मूंद लेने से वास्तविकता नहीं बदलता।
स्वामी जी के हर शब्द अनमोल है
स्वामी जी ने अपने वाणीयों में बार-बार कहा है- ”ईसा मसीह की तरह सोचो और तुम ईसा बन जाओगे। बुद्ध की तरह सोचो और तुम बुद्ध बन जाओगे। अपने भाव को उस भाव में परिवर्तित करो। जिंदगी बस महसूस होने का नाम है। अपनी ताकत, अपनी कला-कौशल का नाम है, जिनके बिना ईश्वर तक पहुंचना नामुमकिन है। ”
कुछ करने के लिए तुम यह सोचोगे कि सामने वाला आगे बढ़ेगा तो हम उसके पीछे हो लेंगे, और हम वह सब कुछ पा लेंगे जो मैंने सोचा है। नहीं ऐसा नहीं हो सकता यह नामुमकिन है।
तुम्हें पाना है ,तो तुम्हें कोशिश करना होगा! उस परमेश्वर को पाने के लिए तुम्हें कोशिश करना होगा, दूसरे का कोशिश दूसरे का नियम तुम्हारे काम नहीं आएगा।
तुम जो बनना चाहते हो पहले उस भाव में तुम बनो, जब तुम उस भाव में बन जाओगे तब तुम्हें धीरे-धीरे अनुभूति होगा कि तुम स्वयं दिन प्रतिदिन हरछण बदल रहे हो।”
स्वामी विवेकानंद जी की तुलना किसी से नहीं हो सकता
यदि अपने भारत के महामानव की बात करें, तो फिर उसके बाद किस की आवश्यकता है। क्या हम यह सोच सकते हैं, कि हमारे सामने दो व्यक्तियों के शब्द हैं एक उनका जिन्होंने अपने आप को प्रमाणित किया, अथवा एक वह जो वह अपने आप को प्रमाणित करने में लगा हुआ है।
निश्चित तौर पर हमें उस प्रमाणित किए हुए व्यक्ति के पीछे जाना होगा,जिसने अपने क्रियाकलापों और आचरण से अपने शब्दों से अपने आप को प्रमाणित कर चुका है।
आज के वर्तमान को भविष्य जब अपने तुला पर चढ़ाएगा तब चढ़ाएंगा। परंतु आज का वर्तमान अपने भूत को जरूर तुला पर चढ़ाता है।
इसलिए इतिहास को हीं उदाहरण मानकर सभीं को भारत के महा मानवों का अनुसरण करना ही होगा। अनुसरण में ही अपना कल्याण है और हमारे विशाल भारत का कल्याण है। स्वामी श्री विवेकानंद जी भारत के अतुल्य महामानव है जिनका तुलना कोई नहीं कर सकता।
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